नई दिल्ली: गणपति को विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धी का स्वामी कहा जाता है। इनका स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्नों का विनाश होता है। वे शीघ्र प्रसन्न होने वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है। गणेश का मतलब है गणों का स्वामी।
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हिंदू पंचाग के अनुसार हर माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर प्रथम पूय देवता श्री गणेश की आराधना को समर्पित विनायकी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। इस बार ये व्रत व्रत 12 मार्च, शनिवार को है। इस व्रत के नाम से ही इस व्रत का फल भी स्पष्ट हो जाता है। इसका अर्थ है वर देने वाला यानि कि हर मनोकामना पूर्ण करने वाला।
इस दिन व्रत रखने से सभी कामनाएं पूरी होती है और विघ्न-बाधाएं दूर होती है। भगवान श्री गणेश बुद्धि प्रदान करने वाले देवता भी हैं। अत: यह व्रत बुद्धि की शुद्धि को देकते हुए अधिक महत्व रखता है। ऐसें करें पूजा।
ऐसें करें पूजा
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद बगवान की थोड़ी अराधना कर लें। इसके बाद दोपहर के समय अपने मंदिर या फिर जहां आपको उचित लगे। वहां पर अपनी इच्छानुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
इसके बाद संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार से पूजन और आरती करें। असके बाद श्रीगणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। फिर ऊं गं गणपतयै नम: मंत्र को बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। और भोग के रुप में गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। साथ ही श्रीगणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें।
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