- एक केले का पत्ते लें और उस पर जैसा अभी पहले बताया, ठीक वैसा त्रिकोण बना लें और उस त्रिकोण के आगे नीम की 27 पत्तियां रख लें। देखिये डालियां नहीं रखनी है, सिर्फ नीम की 27 पत्तियां रखनी हैं। पत्तियों के साथ ही केले के पत्ते के आगे दीपक जलाइए। दीपक जलाकर 108 बार ये मंत्र पढ़िए-
'अग्ने सख्यं वृणीमहे'
ये शब्द ऋग्वेद 8,44,20, यानी कांड आठ, 44 वां सूक्त और 20 वीं ऋचा के हैं और इनका अर्थ है- हम आपकी मित्रता को अंगीकार करते हैं, यानी इस मंत्र में मंगल से मित्रता की बात कही गयी है।
- केले के पत्ते पर सिन्दूर और चमेली के तेल से त्रिकोण बनाएं। आप सोच रहे होंगे हर उपाय में केले का पत्ता ही बता रहे हैं। देखिये अंगारकी चतुर्थी के दिन केले के पत्ते का बहुत महत्व है। यह बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए केले के पत्ते पर सिन्दूर और चमेली के तेल से त्रिकोण बनाकर उसके बीच में एक चमेली के तेल की शीशी और 50 ग्राम सिन्दूर रख दें और ये मंत्र पढ़ें-
'अवन्ती समृत्थं सुमेषानस्थ धरानन्दनं रक्त वस्त्रं समीड़े'
ये मंत्र आहिल्या कामधेनु की पांडुलिपि से प्राप्त किया गया है। इसका अर्थ है अवन्ती से उठे हुए, पृथ्वी से उठे हुए सुमेष, अच्छे मेष के आसन पर विराजमान धरती के पुत्र लाल वस्त्र पहनने वाले मंगल मैं आपको प्रणाम करता हूं। इस मंत्र को पढ़ने के बाद ध्यान रहे चमेली का तेल और सिन्दूर हनुमान जी को चढ़ा दें और केले का पत्ता नदी में विसर्जित कर दें।
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