धर्म डेस्क: गणेश उत्सव के दौरान जाप किये जाने वाले विशेष मंत्रों को सिद्ध करके आप अपना मनचाहा काम बना सकते हैं और जीवन की बुलंदियों को छू सकते हैं। आचार्य इंदु प्रकाश एक ऐसा विशेष मंत्र बताने जा रहे हैं, जिसका इस गणेश उत्सव के दौरान जाप करके, उसे सिद्ध करके आप मनचाहा वर या मनचाही वधु पा सकते हैं।
अगर आप अपने बच्चों के लिये अच्छा जीवनसाथी ढूंढ रहे हैं, अपने लड़के के लिये एक ऐसी कन्या तलाश कर रहे हैं, जो उसके लिये और आपके परिवार के लिये एकदम परफेक्ट हो, जो आपके परिवार को अच्छे से संभाल सकें या फिर आप अपनी लड़की के लिये एक ऐसा वर ढूंढ रहे हैं, जो उसके लिये परफेक्ट हो, जो उसका हमेशा सपोर्ट करे और उसे आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित करे। (परिवर्तिनी एकादशी 2018: राशिनुसार करें ये उपाय होगी सुख-सौभाग्य की बढ़ोत्तरी )
ये विशेष मंत्र है-
“ऊँ हुं गं ग्लौं हरिद्रा गणपतये वर वरद सर्वजन ह्रदयं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा।“
ये हरिद्रा गणेश जी का 32 अक्षरों का मंत्र है। इसका पुरस्चरण 4 लाख है, लेकिन अगर आप बचे हुए समय में इतना जप न कर सकें, तो जितने भी दिन बचे हैं, उनमें सुबह शाम रोज एक माला इस मंत्र का जाप करें। सुबह के समय जाप करते समय अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर रखें और शाम के समय जाप करते समय अपना मुंह उत्तर दिशा की ओर रखें। साथ ही ध्यान रहे कि जाप के लिये तुलसी की माला का उपयोग न करें। इसके बजाय आप लाल चन्दन, मूंगा या रुद्राक्ष की माला पर जाप कर सकते हैं।. तो इस प्रकार मंत्र का जाप करके आप अपने बच्चों के जीवन में खुशियां भर सकते हैं। उन्हें एक अच्छा वर या वधु गिफ्ट के रूप में दे सकते हैं। इसके अलावा गणेश मंत्रों के जाप के लिये आप किन मुद्राओं का प्रयोग कर सकते हैं।
सबसे पहली मुद्रा है- दन्तमुद्रा। अपने दोनों हाथों की मुट्ठियां बांधकर, उनकी मध्यमा उंगलियों को सीधा करने को दन्त मुद्रा कहा गया है।
दूसरी पाश मुद्रा है- दोनों हाथों की मुट्ठियों को बांधकर बायीं तर्जनी को दायीं तर्जनी से आच्छादित करें, फिर दाहिनी तर्जनी और अंगूठे को थोड़ा खोल दे तो ये पाश मुद्रा कहलाती है।
तीसरी अंकुश मुद्रा है- दोनों मध्यमाओं को सीधा रखते हुए, दोनों तर्जनियों को मध्य पोर के पास बांधें, अब तर्जनियों को थोड़ा झुकाकर थोड़ा नीचे की ओर खींचे। ये अंकुश मुद्रा है।
चौथी विघ्न मुद्रा है- दोनों मुट्ठियों को बांधकर अंगूठों को तर्जनी और मध्यमाओं के बीच इस प्रकार रखें कि उनका कुछ भाग बाहर की ओर दिखें। अब मध्यमाओं को अधोमुख करें। ये विघ्न मुद्रा है ।