Diwali 2019: कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि और रविवार का दिन के साथ चतुर्दशी तिथि 12 बजकर 23 मिनट तक ही रहेगी, उसके बाद 12 बजकर 24 मिनट पर अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी और कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। हमारे भारतवर्ष में मनाये जाने वाले हर त्योहार के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है और हर त्योहार की अपनी एक अलग पहचान होती है। दिवाली का ये त्योहार खुशियों का त्योहार है।
धर्मशास्त्र का इतिहास चतुर्थ भाग पृष्ठ- 75 पर ये भी उल्लेख मिलता है कि आज का दिन व्यापारियों के लिये विशेष महत्व रखता है। व्यापारी लोग आज के दिन अपने बही खातों की पूजा करते हैं। अपने मित्रों और अन्य व्यापारियों को आमंत्रित करते हैं और उनका पान व मिठाइयों से सम्मान करते हैं। इस दिन पुराने खाते बंद करके नये खाते खोले जाते हैं। इस दिन लक्ष्मी पूजा के समय बही खाते रखे जाते हैं और उनकी रोली-चावल से पूजा की जाती है। फिर उन्हें भैया दूज के दिन से काम में लिया जाता है।
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दिवली के दिन शाम के समय मां लक्ष्मी और श्री गणेश के साथ ही कुबेर जी की भी पूजा की जाती है। जैसे मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है, उसी प्रकार कुबेर जी को धन का देवता कहा जाता है और जिस घर में ये दोनों निवास करते हैं, वहां पर धन की कभी कमी नहीं होती। शाम के समय मां लक्ष्मी, श्री गणेश और कुबेर जी की पूजा की सही विधि क्या है, लक्ष्मी पूजन का मुहूर्त आदि के बारे में जानें आचार्य इंदु प्रकाश से।
Diwali 2019: एक क्लिक में जानें धनतेरस, यम दीप, दिवाली, गोवर्द्धन पूजा और भैयादूज का शुभ मुहूर्त
दीवाली की तिथि, शुभ मुहूर्त
दीवाली और लक्ष्मी पूजन की तिथि: 27 अक्टूबर
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 28 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर 09 मिनट तक
लक्ष्मी पूजा मुहुर्त: 27 अक्टूबर रात 12 बजकर 23 मिनट तक
कुल अवधि: 01 घंटे 30 मिनट
प्रदोष काल- शाम 5:50 मिनट से 8:14 तक
महानिशीथ काल: रात 11:39 से 12:30 तक होगा
दीवाली का चौघड़िया मुहूर्त
शुभ की चौघड़िया: सुबह 5:40 से 7:16 तक होगी
अमृत की चौघड़िया - शाम 7:16 से रात 8:52 तक
तीसरी चर की चौघड़िया- रात 8:52 से 10:28 तक प्राप्त हो रही है जबकि रात 1:41 से 3:17 तक
लाभ की चौघड़िया- रात 1:41 से 3:17 तक
अत: इस बार प्रदोष काल में लक्ष्मी की पूजा सर्वथा श्रेष्ठ है।
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ऐसे करें दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजन
लक्ष्मी पूजा के लिए उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को अच्छे से साफ करके वहां पर लकड़ी का पाटा बिछाएं। कुछ लोग उस जगह की दीवार को सफेद या हल्के पीले रंग से रंगते हैं। इसके लिये खड़िया या सफेद मिट्टी और गेरू का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पूजा स्थल की ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है। लकड़ी का पाटा बिछाने के बाद उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और लक्ष्मी जी, गणेश जी और कुबेर जी की स्थापना करें। ध्यान रहे कि लक्ष्मी जी की मूर्ति को श्री गणेश के दाहिने हाथ की तरफ स्थापित करना चाहिए। पूजा के लिए कुछ लोग सोने की मूर्ति रखते हैं, कुछ लोग चांदी की, तो कुछ लोग मिट्टी की मूर्ति या फिर तस्वीर से भी पूजा करते हैं। मूर्ति या तस्वीर के अलावा इस दिन कागज पर बने लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करने की भी परंपरा है।
इस प्रकार मूर्ति स्थापना के बाद पूजा स्थल को फूलों से सजाएं। साथ ही पूजा के लिये कलश या लोटा उत्तर दिशा की तरफ रखें और दीपक को आग्नेय कोण, यानी दक्षिण-पूर्व की तरफ रखें। लक्ष्मी पूजा में फल-फूल और मिठाई के साथ ही पान, सुपारी, लौंग इलायची और कमलगट्टे का भी बहुत महत्व है। इसके अलावा धनतेरस के दिन आपने जो भी सामान खरीदा हो, उसे भी लक्ष्मी पूजा के समय पूजा स्थल पर जरूर रखें और उसकी पूजा करें।
माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के तमाम तरीके हैं। वेदों और महापुराणों में कई मंत्र उल्लेखित हैं लेकिन दीपावली में माता लक्ष्मी का आगमन अपने घर में या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में कराना होता है। इसका उल्लेख श्री सूक्त के ऋग्वैदिक श्री सूक्तम के प्रथम ही श्लोक में है।
ॐ हिरण्यवर्णान हरिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम
चंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो म आ वहः।।
भोग पूजा करने के बाद आरती करें। इसके बाद मां का प्रसाद ग्रहण करके दिए भी जलाएं।