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Diwali 2018: जानें कब है दीवाली, साथ ही जानें शुभ मुहूर्त और लक्ष्मी पूजन की पूरी विधि

Diwali 2018 Subh Muhurat and Puja Vidhi:"दीवाली पूरे 5 दिनों का त्योहार होता है। इस दिन सभी घर पर मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते है। इस बार दीवाली 7 नवंबर को मनाई जाएगी। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ अन्य शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published : November 01, 2018 17:14 IST
Laxmi
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धर्म डेस्क: दीवाली के त्योहार घनतेरस के साथ शुरु हो जाता है। इसके साथ भाई दूज के साथ समाप्त हो जाता है। उजाला का त्योहार दीवाली पूरे 5 दिनों का त्योहार होता है। इस दिन सभी घर पर मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते है। इस बार दीवाली 7 नवंबर को मनाई जाएगी। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से लक्ष्मी पूजन के साथ-साथ अन्य शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन संध्या काल में स्थिर लग्न की दीवाली पूजन करना चाहिए। इस साल अमावस्या तिथि 6 नवंबर की रात 10 बजकर 27 मिनट से लग रही है लेकिन उदया तिथि चतुर्दशी होने के कारण अमावस्या का मान 6 नवंबर को नहीं होगा। 7 को सूर्योदय के समय अमावस्या तिथि होने के कारण पूरे दिन अमावस्या तिथि का मान होगा और इसी दिन दीवाली पूजन किया जाएगा। अमावस्या तिथि 9 बजकर 32 मिनट में समाप्त होगा। इसलिए इससे पूर्व की पूजा करना शुभ होगा।

दीपावली का शुभ मुहूर्त

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार शुभ मुहूर्त कुछ इस तरह है।
अभिजीत मुहूर्त: सुबह 11:19 से दोपहर 12:03 तक रहेगा।

प्रदोष काल
स्थिर लग्न और द्विस्वभाव लग्न में लक्ष्मी पूजन करना अच्छा माना जाता है। प्रदोष काल शाम 05:09 से 07:46 तक रहेगा। (Dhanteras 2018: धनतेरस के दिन भूलकर भी घर न लाएं ये चीजें, शुभ की जगह हो जाएगा अपशगुन )
स्थिर लग्न वृष: शाम 05:41 से शाम 07:38 तक रहेगी, लेकिन इस बार वृष लग्न में ग्रहों की स्थिति कुछ ठीक नहीं है। इसलिए इस बार वृष लग्न में पूजा अवॉयड करनी चाहिए।।
द्विस्वभाव लग्न मिथुन: शाम 07:38 से 09:52 तक रहेगा। इस बीच प्रदोष काल भी शाम 07:46 तक रहेगा। अतः आप प्रदोष काल और द्विस्वभाव लग्न मिथुन में पूजा शुरू करके मिथुन लग्न में पूजा सम्पूर्ण कर सकते हैं। ये समय लक्ष्मी पूजा और खाता पूजन के लिये बेहद शुभ है। (Dhanteras 2018 Date: जानें कब है धनतेरस, क्या है खरीददारी का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि)

चौघड़िया में पूजन

  • शाम 05:31 से 07:10 तक लाभ की चौघड़िया रहेगी।
  • रात 08:48 से 10:26 तक शुभ की चौघड़िया रहेगी।
  • रात 10:26 से 12:04 तक अमृत की चौघड़िया रहेगी।
  • लाभ की चौघडियां के समय शाम 07:46 तक प्रदोष काल भी रहेगा।

अतः प्रदोष काल और लाभ की चौघड़िया का फायदा उठाने के इच्छुक लोगों को शाम 05:31 से 07:10 के बीच में लक्ष्मी पूजन कर लेना चाहिए।

महानिशिथकाल मुहूर्त:  रात 11:17 से 12:09 तक रहेगा। हालांकि इस बार अमावस्या तिथि महानिशिथकाल के पहले ही रात 09:32 पर समाप्त हो जायेगी, लेकिन चिंता की बात नहीं है, जब तक अगली उदयातिथि न हो, तब तक पिछली तिथि ही मान्य होती है। अतः विशेष कार्यों की सिद्धि के लिये आप रात 11:17 से 12:09 के बीच पूजा कर सकते हैं और तब, जबकि इस बीच 12:04 तक अमृत की चौघड़िया भी रहेगी। अतः महानिशिथकाल और अमृत की चौघड़िया का लाभ उठाने के इच्छुक लोगों को रात 11:17 से 12:04 के बीच पूजा करनी चाहिए। (Diwali 2018: जानें दीवाली के साथ किस दिन मनाया जाएगा कौन सा त्योहार )

Laxmi

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लक्ष्मी पूजन
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार लक्ष्मी पूजन के लिये शाम 07:38 से 09:52 के बीच का समय सबसे उत्तम है। इस दौरान द्विस्वभाव लग्न मिथुन और शाम 07:46 तक प्रदोष काल रहेगा। इसके अलावा प्रदोष काल और लाभ की चौघड़िया का फायदा उठाने के इच्छुक लोगों को शाम 05:31 से 07:10 के बीच में लक्ष्मी पूजन कर लेना चाहिए। शुभ की चौघड़िया रात 08:48 से 10:26 तक रहेगी। वहीं विशेष कार्यों की सिद्धि के लिये जो लोग महानिशिथकाल के साथ ही अमृत की चौघड़िया का लाभ उठाना चाहते हैं, वो रात 11:17 से 12:04 के बीच लक्ष्मी पूजा कर सकते हैं।

ऐसे करें दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा

लक्ष्मी पूजा के लिये उत्तर-पूर्व दिशा के कोने को अच्छे से साफ करके वहां पर लकड़ी का पाटा बिछाएं। कुछ लोग उस जगह की दिवार को सफेद या हल्के पीले रंग से रंगते हैं। इसके लिये खड़िया या सफेद मिट्टी और गेरु का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पूजा स्थल की ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है। लकड़ी का पाटा बिछाने के बाद उस पर लाल कपड़ा बिछाएं और लक्ष्मी जी, गणेश जी और कुबेर जी की स्थापना करें। ध्यान रहे कि लक्ष्मी जी की मूर्ति को श्री गणेश के दाहिने हाथ की तरफ स्थापित करना चाहिए। पूजा के लिये कुछ लोग सोने की मूर्ति रखते हैं, कुछ लोग चांदी की, तो कुछ लोग मिट्टी की मूर्ति या फिर तस्वीर से भी पूजा करते हैं। मूर्ति या तस्वीर के अलावा इस दिन कागज पर बने लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करने की भी परंपरा है।

इस प्रकार मूर्ति स्थापना के बाद पूजा स्थल को फूलों से सजाएं। साथ ही पूजा के लिये कलश या लोटा उत्तर दिशा की तरफ रखें और दीपक को आग्नेय कोण, यानी दक्षिण-पूर्व की तरफ रखें।  लक्ष्मी पूजा में फल-फूल और मिठाई के साथ ही पान, सुपारी, लौंग इलायची और कमलगट्टे का भी बहुत महत्व है। इसके अलावा धनतेरस के दिन आपने जो भी सामान खरीदा हो, उसे भी लक्ष्मी पूजा के समय पूजा स्थल पर जरूर रखें और उसकी पूजा करें।

माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के तमाम तरीके हैं। वेदों और महापुराणों में कई मंत्र उल्लेखित हैं लेकिन दीपावली में माता लक्ष्मी का आगमन अपने घर में या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में कराना होता है। तो इसका उल्लेख श्री सूक्त के ऋग्वैदिक श्री सूक्तम के प्रथम ही श्लोक में है।

ॐ हिरण्यवर्णान हरिणीं सुवर्ण रजत स्त्रजाम
चंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जातवेदो म आ वहः।।

भोग पूजा करने के बाद आरती करें। इसके बाद मां का प्रसाद ग्रहण करके दिए भी जलाएं।

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