धूम्रवर्ण
माना जात है कि एक बार भगवान ब्रह्मा ने सूर्यदेव को कर्म राज्य का स्वामी नियुक्त कर दिया। राजा बनते ही सूर्य को बहुत अभिमान हो गया। इसी समय में उसे एक बार छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई। उसका नाम था अहम। जिसने शुक्राचार्य गुरु बना लिया। वह अहम से अहंतासुर हो गया। उसने खुद का एक राज्य बसा लिया और भगवान गणेश को तप से प्रसन्न करके वरदान प्राप्त कर लिए।
उसने भी दूसरें राक्षसों की तरह बहुत अत्याचार और अनाचार फैलाया। तब गणेश ने धूम्रवर्ण के रूप में अवतार लिया। उनका वर्ण धुंए जैसा था। वे विकराल थे। उनके हाथ में भीषण पाश था जिससे बहुत ज्वालाएं निकलती थीं। धूम्रवर्ण ने अंहतासुर को युद्ध में हराकर अपनी भक्ति प्रदान की।
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