एकदंत
महर्षि च्यवन ने अपने तपोबल से मद की रचना की। जो च्यवन का पुत्र कहलाया। मदासुर ने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा ली। जिसेक कारण वह शुक्राचार्य की तरह ही विद्या में निपुण हो गया था। साथ ही वह इतना शक्तिशाली हो गया था कि वह भगवान शिव को भी पराजित कर सकता था। इसके उत्पाद से परेशान होकर देवतागण ने भगवान गणेश जी से अपनी रक्षा के लिए याचना की।
तब गणेश जी एकदंत रूप में प्रकट हुए। उनकी चार भुजाएं थीं, एक दांत था, पेट बड़ा हुआ और उनका सिर हाथी के समान था। उनके हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल था। एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया और मदासुर को युद्ध में पराजित किया।.
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