ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के समय धनतेरस पूजा की जाए तो लक्ष्मीजी घर में रूक जाती है। इसीलिए धनतेरस पूजन के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है। वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्योहार के समय यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ ही होता है। इसके अलावा शास्त्रों में माना जाता है कि यमराज को दीपदान करता है उसकी अकाल मृत्यु नही होती है।
धनतेरस का महत्व
इस दिन नए उपहार, सिक्का, बर्तन व गहनों की खरीदारी करना शुभ रहता है। शुभ मुहूर्त के समय पूजन करने के साथ सात अनाज की पूजा की जाती है। सात अनाज गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है। इनकी पूजा के साथ-साथ पूजन सामग्री में विशेष रुप से स्वर्णपुष्पा के पुष्प से भगवती का पूजन करना लाभकारी रहता है। इस दिन पूजा में भोग लगाने के लिये नैवेद्ध के रुप में श्वेत मिष्ठान का प्रयोग किया जाता है।
ऐसे करें पूजा
धनतेरस की पूजा शुभ मुहुर्त में ही करनी चाहिए। इसके लिए सबसे पहले 13 दीपक जला कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करना चाहिए और फिर देव कुबेर का ध्यान करते हुए फूल चढाएं इसके बाद सच्चें मन से कहें कि हे श्रेष्ठ विमान पर विराजमान रहने वाले, गरूडमणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा व वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृ्त शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र देव कुबेर का मैं ध्यान करता हूं। इसके बाद धूप, दीप, नैवैद्ध से पूजन करें और इस मंत्र का जाप करें-
यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये।
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा ।।
इसके बाद इस कथा को कहे या फिर सुनें।
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