कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस बार धनतेरस का त्योहार दिवाली से ठीक एक दिन पहले यानी 13 नवंबर को मनाया जाएगा। वहीं ठीक इसके अगले दिन 14 नवंबर को दिवाली का त्योहार मनाया जाएगा। जानें धनतेरस मनाने के पीछे की कथा, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
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धनतेरस का शुभ मुहूर्त
शुभ मुहूर्त- शाम 5 बजकर 34 मिनट से लेकर शाम 6 बजकर 1 मिनट तक
प्रदोष काल - शाम 5 बजकर 28 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 7 मिनट तक
वृषभ काल मुहूर्त - शाम 5 बजकर 34 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 29 मिनट तक
धनतेरस की कथा
कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान धनवंतरि का जन्म हुआ था। वे अमृत मंथन से उत्पन्न हुए थे। जन्म के समय इनके हाथ में अमृत से भरा कलश था। यही कारण है कि धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरि को प्रसन्न करने के लिए बर्तन खरीदा जाता है।
धनतेरस से जुड़ी दूसरी कथा
दूसरी पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु मृत्युलोक में एक बार विचरण करने के लिए आ रहे थे। तभी माता लक्ष्मी ने विष्णु जी के साथ चलने का आग्रह किया। विष्णु भगवान ने माता लक्ष्मी से कहा कि अगर मैं जो बात कहूं तुम वैसा ही मानो तो फिर चलो। लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और और विष्णु भगवान के साथ धरती पर आ गईं।
कुछ देर बाद भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि जब तक मैं ना आऊं तुम यहीं पर ठहरना। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं। तुम उस तरफ मत आना। लक्ष्मी जी विष्णु भगवान के वापस लौटने का इंतजार करने लगीं। तभी उन्होंने सोचा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा कौन सा रहस्य है जो मुझे मना किया है और वहां पर स्वयं चले गए।
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लक्ष्मी जी भगवान विष्णु के जाने पर उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं। थोड़ा ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें बहुत सारे फूल खिले हुए थे। सरसों की छटा देखकर लक्ष्मी जी मंत्र मुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर लक्ष्मी जी गन्ना तोड़कर चूसने लगीं। विष्णु भगवान आए और लक्ष्मी जी को देखकर नाराज हो गए। साथ ही उन्हें श्राप दे दिया। विष्णु भगवान ने कहा कि मैंने तुम्हें मना किया बावजूद इसके तुम आईं और चोरी का अपराध कर बैठीं। इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 साल तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीणसागर चले गए।
लक्ष्मी जी ने 12 साल तक किसान की सेवा की। साथ ही उनके वास से किसान का घर धन से भर गया। जब 12 साल बाद प्रभु लक्ष्मी जी को लेने आए तो किसान ने उन्हें जाने से रोक दिया। तभी माता लक्ष्मी ने कहा कि तेरस के दिन घर को अच्छे से साफ करना, रात में घी का दीपक जलाना, एक तांबे के कलश में रुपये और पैसे भरकर शाम को मेरी पूजा करना। ऐसा करने से मैं साल भर तुम्हारे साथ रहूंगी। ऐसा करने से किसान का घर साल भर धन से भरा रहा। तभी से तेरस के दिन धन की देवी की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई, और धनतेरस का त्योहार मनाया जाने लगा।
धनतेरस पर इस तरह करें पूजा
- धनतेरस की संध्या को शुभ मुहुर्त में भगवान धनवंतरी, मां लक्ष्मी और कुबेर जी की तस्वीर को पटरे पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें
- इसके बाद घी का दीपक जलाएं
- चंदन से तिलक करें
- पूजा के समय कुबेर जी के मंत्र ॐ ह्रीं कुबेराय नमः का जाप करें
- मां लक्ष्मी को फूल और फल अर्पित करें।
- मिठाई का भोग लगाकर आरती करें
- धनवंतरी स्त्रोत का पाठ करें
- धनवंतरी भगवान को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं
- कुबेर जी को सफेद मिठाई का भोग लगाएं और आरती करें