धर्म डेस्क: हर साल हिंदूओं के कई त्योहार होते है। जिनसे से कुछ का बहुत अधिक महत्व होता है। इन्हीं में से कार्तिक माह को सबसे पवित्र माह माना जाता है। इन्हीं में से एक दिन देव दीवाली के रुप में मनाया जाता है।
देव दीपावली दीवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन देवता प्रथ्वी पर आकर दीवाली मनाते है। जिसके कारण इसे देव दीवाली के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन पूजा-पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसके साथ ही भगवान शिव की महिमा बनी रहती है। लंबी उम्र के साथ-साथ सुख-समृद्धि मिलती है।
इस पर्व का विशेष महत्व भारत देश के उत्तर प्रदेश के वाराणसी राज्य से है। वाराणसी को भगवान शिव की नगरी और घाटों की नगरी कहा जाता है। इस दिन भोलेनाथ के सभी भक्त एक साथ माता गंगा के घाट पर लाखों दीए जला कर देव दीवाली का उत्सव मनाते हैं। इस बार राशी के घाट में 51 लाख दीप जलाएं जाएंगे।
एक मान्यताओं के अनुसार इस दिन काशी के घाटों पर सभी देव आकर भगवान शिव की विजय की खुशी में दिवाली मनाते हैं। इस दिन माता गंगा की पूजा की जाती है। काशी के रविदास घाट से लेरप राजघाट तक लाखों दीए जलाए जाते हैं। जानिए आखिर क्यों काशी में है देव दीवाली का इतना ज्यादा महत्व।
काशी में देव दीपावली मनाने का कारण
काशी में देव दीपावली मनाने का कारण भगवान से जुड़ा है। इस पौराणिक कथा के अनुसार त्रिपुरासुर के दैत्य से तीनों लोक आतंकित था।
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