नई दिल्ली: आज रणवीर सिंह और दीपिका पादुकोण कोंकणी रीति-रिवाज के साथ शादी की। दोनों ने इटली के लोक कोमों में शादी के बंधन में बंध गए है। अब 15 नवंबर को सिंधी रीति-रिवाज के साथ शादी होगी, क्योंकि रणवीर सिंह सिंधी परिवार से ताल्लुक रखते है। इसके साथ ही दीपवीर की एक झलक पाने के लिए फैंस बेसब्री से इंजतार कर रहे है। दीपिका-रणवीर की शादी इटली में होना ही खास नहीं है बल्कि 2 रीति रिवाज के साथ शादी होना बड़ी बात है।
आइए जानते है दीपिका और रणवीर सिंह की कोंकणी रीति-रिवाज की रस्मों के बारें में।
उडिडा मुहूर्त
इस रस्म में काला चना या उड़द जो कि कोंकणी समाज का मुख्य आहार है। यह परंपराओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। शुभ होने के कारण इसे शादी या किसी शुभ अवसर में इस्तेमाल किया जाता है। इस रस्म के लिए दुल्हन को काला चना चक्की पर डालकर पीसना सिखाते है। दूल्हा भी इस रस्म को करता है। ताकि कभी पत्नी बीमार हो जाएं तो उसकी सहायता कर सके। इस रस्म को करने के पीछे कारण होता है कि दंपति की शादीशुदा जिंदगी में कुछ पाठ सिखाएं जाएं। इसके बाद फैमिली के लोग काले चने की बनी इडली खाते है।
काशी यात्रा
हर शादी के रीति रिवाज में अलग-अलग तरीके से शरारते और मस्ती होती है। इसी तरह कोंकणी में भी एक रस्म होती है। जिसमें दूल्हा प्रतीकात्मक रुप से संसार की मोह माया को त्यागकर एकांत के लिए काशी की ओर प्रस्थान करता है। इसके बाद दुल्हन के पिता इसे रोकने के काफी प्रयास करते है। जिसमें दूल्हे को बहुत सारे उपहार दिए जाते है। जिससे दूल्हा मान जाता है।
मंडप पूजा
मंडप पूजा कई रीति रिवाजों के साथ की जाती है। वहीं कोंकणी परंपरा की बात करें तो इसमें दुल्हन को सजाकर मां मंडप पर लाती है। फिर मां और दुल्हन मंडप की पूजा करते है। मां दुल्हन के गले में मनके की एक माला पहनाती है। जिसक बाद दुल्हन कमरे पर वापस चली जाती है।
वरमाला
इस रीति में दूल्हा कुछ रस्में निभाने के बाद मंडप पर पहुंचता है। वहीं दुल्हन को उसके मामा स्टेज पर लाते है। फिर दुल्हा-दुल्हन के बीच एक पर्दा डाला जाता है। जिसे पकड़कर श्लोक पढ़े जाते है। फिर श्लोक खत्म होने के बाद पर्दा हटाया जाता है और दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे को वरमाला डालते है।
कन्यादान
इस रस्म में दुल्हन के पिता दूल्हन का हाथ लेकर दूल्हा के हाथ पर सौंपते है और दुल्हन की मां उनके हाथों पर दूध डालती है। मंत्रोच्चार के साथ परिजन अपनी बेटी, वर को सौंप देते हैं।
कस्थली
दुल्हन और दूल्हे के परिवार बैठते हैं और दूल्हा दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाता है। इसके साथ दुल्हन की मां हवन के लिए सामग्री लाती है और उसके बाद मायके पक्ष के सारे लोग उम्र के हिसाब से खड़े हो जाते है। परिवार के सबसे छोटे सदस्य से लगाई लेकर दुल्हा-दुलह्न होमकुंड में डालते है। जो कि 5 बार प्रकिया दोहराई जाती है। इसके बाद दुल्हा-दुल्हन होमकुंड के 4 फेरे लेते है। इसमें दूल्हा दुल्हन के अंगूठे को पकड़ता है। 2 फेरे में दूल्हा आगे होता है और 2 में दुल्हन आगे होती है। इसके बाद दुल्हन का माना पैर के अंगूठे में बिछिया पहनाता है। जो कि चांदी की होती है।
सप्तपदी
यह रस्म 7 प्रतिज्ञाओं का प्रतीक मानी जाती है। इस रस्म में दुल्हन के सामने चावल के 7 ढेर लगाए जाते है। श्लोक के बीच दुल्हन चावल के ढ़रों पर कदम रखते हुए आगे बढ़ती है।
होन्टी भोर्चे
सप्तपदी के बाद दुल्हन कपड़े बदलती है। वह कापड (शादी की साड़ी) पहन लेती है। उसके अर्द्धचंद्र बिंदी को पूर्णचंद्र बना दिया जाता है जो उसके शादीशुदा होने का प्रतीक है। इसके बाद दुल्हन को सास उपहार के रूप में नारियल, फूल-कुमकुम और ब्लाउज का कपड़ा देती है।
वर उभर्चे
यह शादी की आखिरी रस्म मानी जाती है। इस रस्म में दुल्हन के मामा-मामी जोड़े को मंडप ले जाते है। फिर दुल्हन को जमीन पर बैठाया जाता है और दूल्हा बैठकर उसके पल्लू पर सोने का सिक्का बांधता है। इस रस्म को लेकर मानय्ता है कि आप अपनी पत्नी को आय का ख्याल रखेगा। अंत में जोड़ा दोपहर का भोजन करके दूल्हे के घर प्रस्थान करते है।
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