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Chhath Puja 2021: आज से छठ महापर्व शुरू, जानें 'नहाय खाय' से लेकर 'सूर्योदय के अर्घ्य' तक सबकुछ

8 नवंबर से छठ महापर्व की शुरुआत हो रही है। ये पर्व चार दिन तक चलता है। जानिए इन चार दिनों में किस दिन किस तरह से पूजा अर्चना की जाती है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: November 08, 2021 12:34 IST
Chhath Puja 2021- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Chhath Puja 2021

दिवाली के बाद से ही बाजार छठ पूजा के लिए तैयार हो जाता है। जगह- जगह आपको बाजार में छठ पूजा की रौनक दिखने लगती है। छठ पूजा का त्योहार हर साल दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। इस पर्व में भगवान सूर्य की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस बार छठ महापर्व 8 नवंबर से शुरू हो रहा है और 11 नवंबर तक चलेगा। छठ महापर्व खासतौर बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता है। जानिए चार दिन चलने वाले छठ महापर्व से जुड़ी हर जानकारी, छठ पूजा की तिथियां, शुभ मुहूर्त,  सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, प्रसाद और व्रत कथा।

पहला दिन-नहाय खाय

छठ पूजा के पहले दिन की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। इस दिन व्रती स्नान करके नए कपड़े धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं। इस बार नहाय खाय 8 नवंबर को पड़ रहा है। इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 42 मिनट पर और सूर्योस्त शाम को 5 बजकर 27  मिनट पर होगा।

दूसरा दिन खरना 
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहते हैं। 36 घंटे का व्रत तक समाप्त होता है जब उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। इसलिए दिन महिलाएं शाम को स्नान करके शुद्ध-साफ वस्त्र पहन कर विधि विधान के साथ मिट्टी से बने नए चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर रोटी और गन्ने की रस या गुड़ की खीर बनाती है। जिसे प्रसाद के रूप में छठी मइया और भगवान सूर्य और अपने कुलदेवता को अर्पित किया जाता है। इसके अलावा प्रसाद के रूप में मूली और केला भी रखे जाते है। फिरभगवान सूर्य की पूजा करने के बाद के बाद व्रत यह प्रसाद ग्रहण करती हैं।

खरना के बाद व्रती दो दिनों तक निर्जला व्रत रखकर साधना करती है। जिसमें पूर्ण ब्रह्मचर्य का  पालन किया जाता है। इस दिन से महिलाए भूमि में सोती हैं। 

इस दिन छठ करने वाला श्रद्धालु पूरे दिन का उपवास रखकर शाम के वक्त खीर और रोटी बनाते हैं। इस बार खरना 9 नवंबर को मनाया जाएगा। खरना की शाम को रोटी और गुड़ की खीर का प्रसाद बनाया जाता है। इसके साथ ही प्रसाद में चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ भी बनाया जाता है और फल सब्जियों से पूजा की जाती है। इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 40 मिनट पर और सूर्योस्त शाम को 5 बजकर 40 मिनट पर होगा।

Chhath Puja 2021

Image Source : INSTAGRAM/THEDISPATCH.IN
Chhath Puja 2021

तीसरा दिन 'अस्त होते सूर्य को अर्घ्य'
छठ महापर्व के तीसरे दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार शाम का अर्घ्य 10 नवंबर को दिया जाएगा। इस दिन छठ व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस दिन नदी या तालाब में सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। जिसका इंतजाम कई घाटों पर किया जाता है। कई बार लोग अपने घर के सामने स्थित पार्क में भी गढ्ढे में जल भरकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा निभाते हैं। 

चौथा दिन 'उगते हुए सूर्य को अर्घ्य'
छठ महापर्व के चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने के बाद लोग घाट पर बैठकर विधिवत तरीके से पूजा करते हैं फिर आसपास के लोगों को प्रसाद दिया जाता है। इस बार उगते हुए सूर्य को अर्घ्य 11 नवंबर को दिया जाएगा।

छठ पूजा तिथि और मुहूर्त

तिथि- 8 नवंबर 2021
छठ पूजा के दिन सूर्योदय – सुबह 6 बजकर 42 मिनट पर
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त – शाम को 5 बजकर 40 मिनट पर

छठी मां का प्रसाद
छठ महापर्व के दिन छठी मइया को ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, चावल के लड्डू, खजूर आदि का भोग लगाना शुभ माना जाता है। 

ये है छठ पूजा की व्रत कथा
एक राजा था जिसका नाम स्वायम्भुव मनु था। उनका एक पुत्र प्रियवंद था। प्रियवंद को कोई संतान नहीं हुई और इसी कारण वो दुखी रहा करते थे। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया, जिसके प्रभाव से रानी का गर्भ तो ठहर गया, किंतु मरा हुआ पुत्र उत्पन्न हुआ।

राजा प्रियवंद उस मरे हुए पुत्र को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवंद ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। ठीक उसी समय मणि के समान विमान पर षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। राजा ने उन्हें देखकर अपने मृत पुत्र को जमीन में रख दिया और माता से हाथ जोड़कर पूछा कि हे सुव्रते! आप कौन हैं?

तब देवी ने कहा कि मैं षष्ठी माता हूं। साथ ही इतना कहते ही देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। जिसके बाद माता ने कहा कि 'तुम मेरी पूजा करो। मैं प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र की आयु लंबी करूंगी और साथ ही वो यश को प्राप्त करेगा।' जिसके बाद राजा ने घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। जिस दिन यह घटना हुई और राजा ने जो पूजा की उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि थी। जिसके कारण तब से षष्ठी देवी यानी की छठ देवी का व्रत का प्रारम्भ हुआ। 

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