कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और शुक्रवार का दिन है। षष्ठी तिथि आज रात 9 बजकर 30 मिनट तक रहेगी | आज सूर्य षष्ठी व्रत का तीसरा और महत्वपूर्ण दिन है। इसे डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। सूर्यदेव के तेज से शोभित छठ पूजा का ये त्योहार बीते 18 नवम्बर को शुरू हुआ था। आज के दिन शाम के समय डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जायेगा। फिर कल सुबह उगते हुए सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया जायेगा और अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जायेगा। आपको बता दें कि छठ पूजा का व्रत संतान की लंबी आयु, अच्छी सेहत, पारिवारिक सुख-समृद्धि और मान-सम्मान हेतु छठ पूजा का ये व्रत किया जाता है।
संध्या को ऐसे करें सूर्य को अर्घ्य
शाम के समय सूप में बांस की टोकरी में चावल के लड्डू, ठेकुआ, मूली, शकरकंदी, सुथनी, 5 पत्तियां लगे हुए गन्ने, मूली, अदरक और हल्दी का हरा पौधा, बड़ा वाला नींबू, फल जैसे नाशपाती, केला और शरीफा, पानी वाला नारियल , मिठाईयां, गेहूं, चावल का आटा, गुड़ आदि रख कर सजा लें। इसके साथ ही पूजा थाल में पान, सुपारी, चावल, सिंदूर, घी का दीपक, शहद , धूप या अगरबत्ती आदि रख लें और एक लोटे जल और दूध ले लें। इसी से भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
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छठ पूजा तिथि और मुहूर्त
तिथि- 20 नवंबर 2020
छठ पूजा के दिन सूर्योदय – सुबह 6 बजकर 48 मिनट
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त – शाम 5 बजकर 36 मिनट
छठी मां का प्रसाद
इन दिनों में छठी मइया को ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, चावल के लड्डू, खजूर आदि का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
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छठ पूजा की व्रत कथा
एक राजा था जिसका नाम स्वायम्भुव मनु था। उनका एक पुत्र प्रियवंद था। प्रियवंद को कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई और इसी कारण वो दुखी रहा करते थे। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया, जिसके प्रभाव से रानी का गर्भ तो ठहर गया, किंतु मरा हुआ पुत्र उत्पन्न हुआ।
राजा प्रियवंद उस मरे हुए पुत्र को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवंद ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। ठीक उसी समय मणि के समान विमान पर षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। राजा ने उन्हें देखकर अपने मृत पुत्र को जमीन में रख दिया और माता से हाथ जोड़कर पूछा कि हे सुव्रते! आप कौन हैं
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तब देवी ने कहा कि मै षष्ठी माता हूं। साथ ही इतना कहते ही देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। जिसके बाद माता ने कहा कि तुम मेरी पूजा करो। मैं प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र की आयु लंबी करूंगी और साथ ही वो यश को प्राप्त करेगा। जिसके बाद राजा ने घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। जिस दिन यह घटना हुई और राजा ने वो पूजा की उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी। जिसके कारण तब से षष्ठी देवी यानी की छठ देवी का व्रत का प्रारम्भ हुआ।