Monday, December 23, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. लाइफस्टाइल
  3. जीवन मंत्र
  4. Chhath Puja 2019: छठ पर्व को लेकर प्रचलित हैं भगवान राम से लेकर द्रौपदी से जुड़ी चार कथाएं

Chhath Puja 2019: छठ पर्व को लेकर प्रचलित हैं भगवान राम से लेकर द्रौपदी से जुड़ी चार कथाएं

Chhath Puja 2019: छठ पूजा और सूर्य की आराधना का प्रारंभ कब हुआ। इसके बारे में इन 4 पौराणिक कथाओं में बताया गया है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : October 31, 2019 13:02 IST
Chhath Puja 2019
Chhath Puja 2019

Chhath Puja 2019 History And Significance: छठ पूजा उत्तर भारत में बेहद अहम त्योहारों में से एक मानी जाती है। इस पर्व में छठी माता और भगवान सूर्य की विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना की जाती है। इस बार छठ पूजा का प्रारंभ 31 अक्टूबर से हो रहा है जो 3 नंवबर तक चलेगा। छठ पूजा की शुरूआत को लेकर चार पौराणिक कथाएं सामने आईं है। ये कथाएं सतयुग में भगवान राम से लेकर द्वापर के दानवीर कर्ण और पांडवों की पत्नी द्रोपदी से संबंधित है जिन्होंने सूर्य की उपासना की थी। वहीं राजा प्रियंवद ने भी छठी माई की पूजा की थी। पढ़ें सूर्य उपासना और छठी मइया की पूजा की पौराणिक कथाएं। 

श्री राम और माता सीता ने व्रत रख किया था सूर्य यज्ञ

राम और सीता ने भी छठ पूजा की थी। शास्त्रों के अनुसार जब भगवान श्री राम वनवास से वापस आए तब राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन व्रत रख कर भगवान सूर्य की आराधना की और सप्तमी के दिन यह व्रत पूरा किया। इसके बाद राम और सीता ने पवित्र सरयू के तट पर भगवान सूर्य का अनुष्ठान कर उन्हें प्रसन्न किया और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। तब से सूर्य उपासना का पर्व प्रारम्भ हुआ।

Chhath Puja 2019: तीन दिनों तक चलने वाले छठ पूजा के 'नहाय खाय' से लेकर 'सूर्योदय के अर्घ्य' के बारे में जानिए सबकुछ

कौरवों से राजपाठ वापस पाने के लिए द्रौपदी ने किया व्रत
महाभारत काल द्रौपदी ने भी इस व्रत को रखा था। शास्त्रों के अनुसार जब पांडव अपना पूरा राजपाठ कौरवों से जुए में हार गए थे और वह जंगल-जंगल भटक रहे थे। यह सब द्रौपदी से देखा न गया और उन्होंने छठी मइया पूजा की और व्रत भी रखा। जिसके प्रभाव के कारण पांडवों को अपना खोया हुआ राज वापस मिल गया था।

शाप से मुक्ति के लिए राजकुमारी सुकन्या ने रखा व्रत
बहुत समय पहले शर्याति नाम के एक राजा थे। उनकी अनेक पत्नियां थी, लेकिन उनकी एकमात्र संतान सुकन्या नामक पुत्री थी। राजा को अपनी पुत्री बहुत प्रिय थी। एक बार राजा शर्याति जंगल में शिकार खेलने गए। उनके साथ सुकन्या भी गईं। जंगल में च्यवन ऋषि तपस्या कर रहे थे। ऋषि तपस्या में इतने लीन थे कि उनके शरीर पर दीमक लग गई थी। बांबी से उनकी आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं।

सुकन्या ने कौतुहलवश उन बांबी के दोनों छिद्रों में जहां ऋषि की आंखें थी वहां पर एक तिनका मार दिया जिससे मुनि की आंखें फूट गईं। क्रोधित होकर च्यवनऋषि ने शाप दिया जिससे राजा शर्याति के सैनिकों का मल-मूत्र निकलना बंद हो गया। सैनिक दर्द से तपड़ने लगे। जब यह बात राजा शर्याति को मालूम हुई तो वह सुकन्या को लेकर च्यवनमुनि के पास क्षमा मांगने पहुंचे। राजा ने अपनी पुत्री के अपराध को देखते हुए उसे ऋषि को ही समर्पित कर दिया।

Vastu Tips: होटल में सुरक्षा गार्ड का कमरा पूर्व दिशा की ओर बनवाना होता है फायदेमंद

सुकन्या ऋषि च्यवन के पास रहकर ही उनकी सेवा करने लगी। एक दिन कार्तिक मास में सुकन्या जल लाने के लिए पुष्करिणी के समीप गई। वहां उसे एक नागकन्या मिली। नागकन्या ने सुकन्या को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य की उपासना एवं व्रत करने को कहा। सुकन्या ने पूरी निष्ठा से छठ का व्रत किया जिसके प्रभाव से च्यवन मुनि की आंखों की ज्योति पुन: लौट आई।

संतान प्राप्ति के लिए राजा प्रियवंद ने रखा छठ माता का व्रत
छठ पूजा करने से संतानों की लंबी आयु के साथ-साथ निसंतान को जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है। इस बारे में श्रीमद्द भागवत पुराण में बताया गया है। इसके अनुसार एक राजा था जिसका नाम स्वायम्भुव मनु था। उनका एक पुत्र प्रियवंद था। प्रियवंद को कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई और इसी कारण वो दुखी रहा करते थे। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया, जिसके प्रभाव से रानी का गर्भ तो ठहर गया, किंतु मरा हुआ पुत्र उत्पन्न हुआ।

राजा प्रियवंद उस मरे हुए पुत्र को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवंद ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। ठीक उसी समय मणि के समान विमान पर षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। राजा ने उन्हें देखकर अपने मृत पुत्र को जमीन में रख दिया और माता से हाथ जोड़कर पूछा कि हे सुव्रते! आप कौन हैं?

तब देवी ने कहा कि मै षष्ठी माता हूं। साथ ही इतना कहते ही देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। जिसके बाद माता ने कहा कि तुम मेरी पूजा करो। मैं प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र की आयु लंबी करूंगी और साथ ही वो यश को प्राप्त करेगा। जिसके बाद राजा ने घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। जिस दिन यह घटना हुई और राजा ने वो पूजा की उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी। जिसके कारण तब से षष्ठी देवी यानी की छठ देवी का व्रत का प्रारम्भ हुआ।

Latest Lifestyle News

Related Video

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Religion News in Hindi के लिए क्लिक करें लाइफस्टाइल सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement