तीन दिनों का महापर्व छठ दिवाली के छठे दिन मनाया जाता है। दिवाली खत्म होते ही लोग छठ की तैयारी में लग जाते हैं। जैसा कि आपको पता है छठ की शुरुआत 'नहाय खाय' से होती है आपको बता दें कि इस साल 31 अक्टूबर को 'नहाय खाय' मनाया जाएगा। इस दिन जो भी छठ करने वाले व्यक्ति हैं वह स्नान करने के बाद नए कपड़े पहनते हैं और उसके बाद भी खाना खाते है। 'नहाय खाय' के दिन एक बात का खास ध्यान रखा जाता है वह यह कि खाना में किसी भी प्रकार के मसाला और लहसन और प्याज न मिलाया जाए। इसका साफ अर्थ यह है कि काफी साधारण तरीके से आज के दिन खाना बनाया जाता है।
पहला दिन नहाय खाय
छठ पूजा की शुरूआत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन नहाय खाय के साथ होगी। इस दिन व्रत स्नान करके नए कपड़े धारण करते है और शाकाहारी भोजन करते है। व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
chhath Puja 2019: छठ पर्व को लेकर प्रचलित हैं भगवान राम से लेकर द्रौपदी से जुड़ी चार कथाएं
दूसरा दिन खरना
दूसरे दिन 'खरना' होता है। खरना के दिन छठ करने वाले व्यक्ति पूरे दिन का उपवास रखकर शाम के वक्त खीर और रोटी बनाते है। इस बार खरना 1 नवंबर को मनाया जाएगा। खरना के शाम को रोटी और गुड़ के खीर का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद में चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ बनाया जाता है। साथ ही फल सब्जियों से पूजा की जाती है।
तीसरे दिन 'अस्त होते सूर्य को अर्घ्य'
छठ के तीसरे दिन यानी शाम के वक्त अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य दी जाती है। इस बार शाम का अर्घ्य 2 नवंबर को है। छठ व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत करते हुए शाम को अस्त होते हुए सूर्य को अर्घ्य देती है। इस दिन नदी या तालाब में सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है।
Chhath 2019 Thekua Recipe: छठ पूजा के लिए यूं बनाएं बेहतरीन ठेकुआ
चौथे दिन 'उगते हुए सूर्य को अर्घ्य'
चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दी जाती है। अर्घ्य देने के बाद लोग घाट पर बैठकर विधिवत तरीके से पूजा करते हैं फिर आसपास के लोगों को प्रसाद दिया जाता है। इस बार 3 नवंबर को मनाया जाएगा।
छठ पूजा तिथि व मुहूर्त
2 नवंबर 2019
छठ पूजा के दिन सूर्योदय – सुबह 6 बजकर 33 मिनट
छठ पूजा के दिन सूर्यास्त – शाम 5 बजकर 35 मिनट
छठी मां का प्रसाद
इन दिनों में छठी मइया को ठेकुआ, मालपुआ, खीर, सूजी का हलवा, चावल के लड्डू, खजूर आदि का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
छठ पूजा की व्रत कथा
एक राजा था जिसका नाम स्वायम्भुव मनु था। उनका एक पुत्र प्रियवंद था। प्रियवंद को कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई और इसी कारण वो दुखी रहा करते थे। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया, जिसके प्रभाव से रानी का गर्भ तो ठहर गया, किंतु मरा हुआ पुत्र उत्पन्न हुआ।
तब देवी ने कहा कि मै षष्ठी माता हूं। साथ ही इतना कहते ही देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। जिसके बाद माता ने कहा कि तुम मेरी पूजा करो। मैं प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र की आयु लंबी करूंगी और साथ ही वो यश को प्राप्त करेगा। जिसके बाद राजा ने घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। जिस दिन यह घटना हुई और राजा ने वो पूजा की उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी। जिसके कारण तब से षष्ठी देवी यानी की छठ देवी का व्रत का प्रारम्भ हुआ।