छठ पूजा 2018: कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि और रविवार के साथ ही छठ पूजा का विधान शुरु हो जाएगा। इसे सूर्य षष्ठी व्रत भी कहते है। 11 नवंबर से छठ पूजा का ये पर्व शुरु हो रहा है। दीपावली के बाद बड़े त्योहारों में शामिल छठ पूजा का बड़ा ही विशेष महत्व है | छठ पूजा का यह व्रत मुख्य रूप से संतान की लंबी आयु, अच्छी सेहत, पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
छठ पूजा में कब किस दिन है कौन सा त्योहार
छठ पूजा का ये त्योहार पूरे चार दिनों तक मनाया जाता है।
- 11 नवंबर को छठ पूजा के पहले दिन, यानी नहाय-खाय होता है।
- 12 नवंबर को छठ पूजा का दूसरा दिन यानी खरना।
- 13 नवंबर तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य
- 14 नवंबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है।
छठ पूजा के पहले दिन सबसे पहले घर की साफ-सफाई करनी चाहिए। फिर व्रती को स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनने चाहिए और भोजन ग्रहण करके व्रत का आरम्भ करना चाहिए| इस दिन भोजन में कद्दू, यानी पेठा और चने की दाल का बहुत महत्व है। साथ ही इस दिन धान से बना चिड़वा, जिसे कहीं-कहीं पर स्थानीय भाषा में अरवा चावल भी कहते हैं, खाया जाता है और व्रती के भोजन करने के बाद ही परिवार के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं। भूलकर भी भगवान विष्णु पर न चढ़ाएं ये चीजें, हो जाएंगे रुष्ट
छठ पूजा के दिन ऐसे करें पूजा
स्नान करने के बाद नदी के तट पर जाएं और आचमन करें इसके बाद सूर्योदय के समय अपने शरीर पर मिट्टी लगाकर नदी पर स्नान करें। इसके बाद दुबारा आचमन कर कपड़े पहने और इस सप्ताक्षर मंत्र को बोलते हुए ऊं खखोल्काय स्वाहा सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान सूर्य देव को लाल फूल, लाल रंग का कपड़ा और रक्त चंदन अर्पित करें। इसके बाद घी का दीपक जलाकर आरती करें इसके बाद पीले रंग की मिठाई से भोग लगाएं। फिर हाथ जोड़कर इस शिव प्रोक्त सूर्याष्टक का पाठ करें। (कुंडली के वह योग, जो आपको को बनाते हैं धनवान!, जानें इनके बारें में विस्तार से )
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर मनोस्तु ते।।
सप्ताश्चरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्ममज्म।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यम्।।
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यम्।।
बृंहितं तेज:पुजं च वायु माकाशमेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेज: प्रदीपनम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्।।
तं सूर्य जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणामाम्यहम्।।
इसके बाद अपनी भूल-चूक की माफी मांगे। इससे सूर्य देव जल्द ही प्रसन्न होगे और आपको मनवांछित फलों की प्राप्ति होगी।
छठ पूजा की व्रत कथा
राम और सीता ने भी छठ पूजा की थी। शास्त्रों के अनुसार जब भगवान श्री राम वनवास से वापस आए तब राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन व्रत रख कर रखकर भगवान सूर्य की आराधना की और सप्तमी के दिन यह व्रत पूरा किया। इसके बाद राम और सीता ने पवित्र सरयू के तट पर भगवान सूर्य का अनुष्ठान कर उन्हें प्रसन्न किया और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था।
अन्य कथा
महाभारत की द्रोपदी ने भी इस व्रत को रखा था। शास्त्रों के अनुसार जब पांडव अपना पूरा राजपाठ कौरवों से जुए में हार गए थे और वह जंगल-जंगल भटक रहे थे। यह सब द्रौपदी से देखा न गया और उसने छठ पूजा की और व्रत रखा। जिसके प्रभाव के कारण पांडवों को अपना खोया हुआ राज वापस मिल गया था।
निसंतानों को हो सकती है संतान की प्राप्ति
छठ पूजा करने से संतानों की लंबी आयु के साथ-साथ निसंतान को जल्द ही संतान की प्राप्ति होती है। इस बारें में श्रीमद्द भागवत पुराण में बताया गया है। इसके अनुसार एक राजा था जिसका नाम स्वायम्भुव मनु था। उनका एक पुत्र प्रियव्रत था। जो एक राजा था, लेकिन अधिक समय बीत जाने के बाद भी उनको कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई। तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी को प्रसाद दिया, जिसके प्रभाव से रानी का गर्भ तो ठहर गया, किंतु मरा हुआ पुत्र उत्पन्न हुआ।
राजा प्रियवत उस मरे हुए पुत्र को लेकर श्मशान गए। पुत्र वियोग में प्रियवत ने भी प्राण त्यागने का प्रयास किया। ठीक उसी समय मणि के समान विमान पर षष्ठी देवी वहां आ पहुंची। राजा ने उन्हें देखकर अपने मृत पुत्र को जमीन में रख दिया और माता से हाथ जोड़कर पूछा कि हे सुव्रते! आप कौन हैं?
तब देवी ने कहा कि मै षष्ठी माता हूं। साथ ही इतना कहते ही देवी षष्ठी ने उस बालक को उठा लिया और खेल-खेल में उस बालक को जीवित कर दिया। जिसके बाद माता ने कहा कि तुम मेरी पूजा करो और सभी लोगों से कहो कि करें जिससे प्रसन्न होकर तुम्हारे पुत्र की आयु लंबी होगी साथ ही वो यश को प्राप्त करेगा। जिसके बाद राजा ने घर जाकर बड़े उत्साह से नियमानुसार षष्ठी देवी की पूजा संपन्न की। जिस दिन यह घटना हुई और राजा ने वो पूजा की उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को की गई थी। जिसके कारण तब से षष्ठी देवी यानी की छठ देवी का व्रत का प्रारम्भ हुआ।