आज से भगवान श्री विष्णु विश्राम के लिये क्षीर सागर में चले जाते है और पूरे चार महीनों तक वहीं पर रहेंगे । भगवान श्री हरि के शयनकाल के इन चार महीनों को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है | इन चार महीनों में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास शामिल हैं। चातुर्मास के आरंभ होने के साथ ही अगले चार महीनों तक शादी-ब्याह आदि सभी शुभ कार्य करना वर्जित हो जाता है । शादी-ब्याह के अलावा इन चार महीनों के दौरान कुछ चीज़ों का खाना-पीना भी निषेध हो जाता है।
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चातुर्मास में रखें इन बातों का ध्यान
- आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार इस दौरान श्रावण मास में शाक का त्याग, भाद्रपद मास में दही और मट्ठे का त्याग, आश्विन मास में दूध का त्याग और कार्तिक मास में द्विदल, यानी दाल का त्याग किया जाता है।
- मत्स्य पुराण एवं भविष्य पुराण में बताया गया है कि इस दौरान गुड़ के त्याग से व्यक्ति को मधुर स्वर प्राप्त होता है, तेल और घी के त्याग से सौन्दर्य, यानी सुंदरता मिलती है, शाक यानी पत्तेदार सब्जियों के त्याग से विवेक, बुद्धि एवं अच्छी संतान की प्राप्ति होती है और दही व दूध के त्याग से व्यक्ति को पुण्य प्राप्त होता है। साथ ही जीवन में तरक्की भी होती है। हालांकि इस दौरान तीर्थ यात्रा करना, स्नान-दान करना तथा भगवान का ध्यान करना शुभ माना जाता है।
- चातुर्मास में संभव हो तो ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इसके साथ ही उपवास, दान, ध्यान, स्नान, जप करना चाहिए।
- चातुर्मास के दौरान सभी बुराईयों का त्याग कर देना चाहिए। किसी भी व्यक्ति की निंदा नहीं करना चाहिए।
- चातुर्मास में साधना करना काफी अच्छा माना जाता है।
- चातुर्मास जिसमें श्रावण, भादौ, आश्विन और कार्तिक का माह आता है उसमें खान-पान और व्रत के नियम और संयम का पालन करना चाहिए।
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