सुखी जीवन की परिकल्पना हर मनुष्य की होती है। हर कोई चाहता है कि उसके जीवन पर दुख की छाया बिल्कुल भी न पड़ें। उसका हर एक पल सुख से भरा हो। वास्तविक जीवन में मनुष्य की ये कल्पना सिर्फ सोच मात्र है क्योंकि जीवन में सुख और दुख दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। अगर जीवन में सुख है तो दुख भी आएगा और दुख है तो सुख का आना भी निश्चित है। इसी सुखी जीवन को लेकर आचार्य चाणक्य ने कुछ नीतियां और अनुमोल विचार व्यक्ति किए हैं। ये विचार आज के जमाने में भी प्रासांगिक हैं। आचार्य चाणक्य के इसी विचारों में से एक विचार का विश्लेषण करेंगे।
आचार्य चाणक्य ने एक श्लोक के माध्यम से ऐसी तीन चीजों के बारे में बताया है जिनसे ना तो ज्यादा दूरी बनाकर और ना ही बहुत पास रहना चाहिए।
अत्यासन्ना विनाशाय दूरस्था न फलप्रदा:।
सेवितव्यं मध्याभागेन राजा बहिर्गुरू: स्त्रियं:।।
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि आर्थिक या सामाजिक रूप से शक्तिशाली शख्स, आग और स्त्री के बहुत करीब नहीं आना चाहिए और ना ही इनसे बहुत दूर जाना चाहिए।आचार्य चाणक्य का कहना है कि सामाजिक रूप से बलवान शख्स से ज्यादा दूरी बनाने से उनसे मिलने वाले फायदे दूर हो जाते हैं। ऐसे शख्स के ज्यादा करीब होने से कई बार सम्मान को ठेस पहुंचने, दंड या षडयंत्र का शिकार होने या उनके चंगुल में फंसने का डर बना रहता है।
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आचार्य चाणक्य कहते हैं सामाजिक और आर्थिक रूप से आपको फायदा पहुंचाने वाला शक्तिशाली शख्स अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर आपको नुकसान भी पहुंचा सकता है। इसलिए ऐसे व्यक्ति से ज्यादा नजदीकी अच्छी नहीं और ज्यादा दूरी बनाकर रहना भी ठीक नहीं होता है।
अग्नि को लेकर आचार्य चाणक्य ने कहा कि बर्तन से ज्यादा दूरी रखने पर खाना नहीं बन सकता है। चाणक्य ने आगे कहा कि अग्नि से ज्यादा दूर होने से अन्य प्रकार के लाभ जरूर होंगे। हालांकि इसके ज्यादा करीब जाने पर शरीर के अंग जरूर जल सकते हैं।
आचार्य चाणक्य स्त्री को लेकर कहते हैं कि इनके ज्यादा करीब जाने से शख्स को ईर्ष्या और ज्यादा दूरी बनाने पर नफरत मिलती है. वहीं चाणक्य कहते हैं कि स्त्री को कभी कमजोर नहीं समझना चाहिए, क्योंकि इस सृष्टि के सृजन में जितना योगदान पुरुष का है उतना ही स्त्री का भी है।