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इस एक चीज को स्वीकार करके जीने से लाख गुना अच्छा है मनुष्य का मर जाना

खुशहाल जिंदगी के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो चाणक्य के इन सुविचारों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 12, 2021 17:31 IST
Chanakya Niti-चाणक्य नीति- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Chanakya Niti-चाणक्य नीति

आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार अपमान पर आधारित है।

'खुद का अपमान कराके जीने से तो अच्छा मर जाना है क्योंकि प्राणों के त्यागने से केवल एक ही बार कष्ट होता है पर अपमानित होकर जीवित रहने से आजीवन दुख होता है।' आचार्य चाणक्य 

आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि अगर कोई व्यक्ति अपना अपमान करा रहा है तो उससे ज्यादा बुरा और कुछ भी नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अपना अपमान कराकर जीने का मतलब है कि आप जीवनभर उस दुख के साए में रहेंगे जो आपको दिन पर दिन अंदर से तिल तिल मारता रहेगा। ऐसा जीवन बेहद कष्टकारी और अपमानजनक होगा। 

समय रहते ही मनुष्य ने अगर इन दो परिस्थितियों में नहीं किया खुद पर नियंत्रण, तकलीफों से भर जाएगा जीवन

असल जिंदगी में अक्सर होता है कि लोग दूसरे का अपमान कर देते हैं। कई बार ये अपमान किसी गलती पर होता है तो कई बार लोग सिर्फ और सिर्फ दूसरों को नीचा दिखाने के लिए। अगर आपकी गलती पर कोई आपको कुछ सुना रहा है लेकिन लिमिट में रहकर तो एक बार तो फिर भी उसे झेला जा सकता है। लेकिन अगर कोई आपको जान बूझकर टॉर्गेट कर रहा है तो आपका चुप रहना उसे बढ़ावा दे सकता है। अगर आप ये सोचेंगे कि अगली बार ऐसा होगा तो आप उसे जवाब देंगे या फिर ऐसा करने से रोकेंगे। आपकी ये सोच ही उसे दोबारा ऐसा करने की हिम्मत देगी। 

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कभी भी अगर कोई आपका अपमान करता है तो उसे वहीं रोक दें। ऐसा करने से सामने वाले की हिम्मत टूटेगी और आप उसे बढ़ावा नहीं देंगे। इसके साथ ही आप अपने स्वाभिमान की रक्षा भी करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि अपमान का घूंट पीकर जिंदा रहना मौत से भी बददतर है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है खुद का अपमान कराके जीने से तो अच्छा मर जाना है क्योंकि प्राणों के त्यागने से केवल एक ही बार कष्ट होता है पर अपमानित होकर जीवित रहने से आजीवन दुख होता है। 

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