आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार सोच पर आधारित है।
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'सोच का अंधेरा रात के अंधेरे से ज्यादा खतरनाक होता है।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि सोच का अंधेरा सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। इस तरह का अंधेरा उस अंधेरे से भी ज्यादा खतरनाक होता है जब आंखों की रोशनी चली जाए। असल जिंदगी में आपका सामना कई तरह के लोगों से होता है। कुछ लोगों के विचार इतने ज्यादा खराब होते हैं कि उन्हें उसी में रहने की आदत होती है। आप चाहे कितनी की कोशिश क्यों ना कर लें कि सामने वाला उस अंधेरे से बाहर निकल आए लेकिन ऐसा होना मुश्किल होता है।
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ऐसा इसलिए क्योंकि जिन लोगों की सोच अच्छी नहीं होती वो कुछ भी अच्छा नहीं सोच सकते। उनके मन में सिर्फ गलत ख्याल ही आते रहते हैं। वो ना तो किसी का अच्छा कर सकते हैं और ना ही किसी के बारे में अच्छा सोच सकते हैं। हर व्यक्ति कि सोच एक जैसी हो ये तो होना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन इतना जरूर कि है कि सामने वाला अपनी सोच किस तरह की बनाता है ये उस पर निर्भर करता है।
सोच दिमाग की उपज होती है। किसी भी व्यक्ति का दिमाग पर काबू पाना मुश्किल हो सकता है लेकिन उससे उपजे ख्यालों को साकार रूप देना नहीं। जिन लोगों की सोच खराब होती है उनसे हमेशा दूर रहना चाहिए। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा कि है सोच का अंधेरा रात के अंधेरे से ज्यादा खतरनाक होता है।