आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार धन पर आधारित है।
'किसी व्यक्ति के पास जरूरत से ज्यादा धन हो जाए वो धन का दुरुपयोग करने लगता है। जिससे उसे बुरी आदतें भी लग सकती हैं। इसलिए धन की अति भी जहर के समान है।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि मनुष्य के पास हमेशा धन सीमित मात्रा में ही होना चाहिए। सीमित मात्रा का मतलब है कि उसकी सारी जरूरतें पूरी हो जाएं। जिस मनुष्य के पास सीमित धन होगा वो अपनी इच्छाओं को प्राथमिकता के आधार पर पूरी करेगा। ऐसे मनुष्य का दिमाग किसी भी गलत काम या फिर गलत चीजों की ओर धन खर्च करने को लेकर नहीं जाएगा। जिसकी वजह सीमित मात्रा में धन का होना है।
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इसके उलट जिस व्यक्ति के पास जरूरत से ज्यादा पैसा होता है उसका दिमाग बस यही चलता रहता है कि वो उसे कहां खर्च करें। हालांकि ऐसा होना हर बार भी सही नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि ज्यादा पैसा कई बार मनुष्य की बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है। उसके दिमाग में पैसों की गर्मी इस कदर भरी रहती है कि वो अपने सामने किसी को भी कुछ नहीं समझता। यहां तक कि कई बार वो गलत राह पर चल पड़ता है।
अगर मनुष्य के स्वभाव में शामिल हो गईं ये चीजें, तो उसकी हार निश्चित
गलत राह का मतलब बुरी लत से है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने का कहना है कि मनुष्य के पास इतना पैसा हो कि उसकी जरूरतें पूरी हो जाएं। अन्यथा आगे चलकर ज्यादा पैसा उसके लिए जहर के समान हो जाता है।