आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का विचार मनुष्य को संतुष्ट नहीं होना चाहिए इस पर आधारित है।
'व्यक्ति को अभ्यास करने में, भगवान के नामों का जाप करने में और दूसरों की भलाई करने में कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि मनुष्य को कभी भी इन तीन कार्यों को करने में संतुष्ट नहीं होना चाहिए। ये तीन कार्य हैं- अभ्यास करना, भगवान के नामों का जाप करना और दूसरों की भलाई करना। अगर मनुष्य इन तीन कामों में संतुष्ट हो गया तो उसका जीवन में सफलता पाना मुश्किल है।
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दरअसल, मनुष्य की प्रवृत्ति होती है कि कुछ कामों को करने के बाद उसका मन हट जाता है। सबसे पहले बात करते हैं अभ्यास करने की। मनुष्य को अगर किसी भी कार्य में सफलता हासिल करनी है तो उसे हार का सामना करने पर अभ्यास करना नहीं छोड़ना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप किसी चीज को पाने के लिए बार बार अभ्यास नहीं करेंगे तो आप सफल कैसे होंगे।
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अब बात करते हैं भगवान का नाम का जाप करने की। मनुष्य को हमेशा भगवान के नाम का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से उसे सुकून मिलेगा। जब मन शांत रहेगा तो वो और चीजों को करने पर फोकस कर पाएगा। आखिर में बात करते हैं दूसरों की भलाई करने में। मनुष्य को कभी भी दूसरों की भलाई करने में संतुष्ट नहीं रहना चाहिए। दूसरों का भला करना अच्छा कार्य है। इससे ना केवल आपके मन को शांति मिलेगी बल्कि आप किसी का भला करके पुण्य भी कमाएंगे। इसी वजह से आचार्य चाणक्य का कहना है कि व्यक्ति को अभ्यास करने में, भगवान के नामों का जाप करने में और दूसरों की भलाई करने में कभी भी संतुष्ट नहीं होना चाहिए।'