आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार मनुष्य का परीक्षण किस आधार पर करना चाहिए इस पर आधारित है।
'जिस तरह से सोने का परीक्षण उसे घिसकर, काटकर, तपाकर और पीट कर किया जाता है उसी तरह मनुष्य का परीक्षण भी उसके त्याग, आचरण, गुण और उसके व्यवहार से किया जाना चाहिए।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि जब भी किसी जौहरी के पास सोना आता है तो वो आंख मूंद कर सामने वाले पर भरोसा नहीं कर लेता कि सोना असली है या फिर नकली। जौहरी कई तरह से सोने की जांच पड़ताल करता है ताकि उसे ये पता चल जाए कि उसके पास जो सोना आया है वो असली है या नहीं। अपनी ये जांच पड़ताल वो कई स्तर पर करता है। कई बार वो सोने को घिसता है, कभी उसे काटता है, कभी आग के सामने तपाता है तो कभी जरूरत के आधार पर उसे पीटता भी है।
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जौहरी ये तब तक करता रहता है जब तक उसे इस बात का विश्वास नहीं हो जाता कि सोना असली है या फिर नकली। आचार्य चाणक्य का कहना है कि जिस तरह से सोने की शुद्धता की जांच जौहरी कई तरह से करता है ठीक उसी तरह से इंसान को जज करने के कुछ पैमाने होते हैं। जब भी कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को परखे तो कुछ पैमानों के आधार पर परखे।
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मनुष्य को परखने के आचार्य चाणक्य ने चार पैमाने बताए हैं। ये 4 पैमाने हैं त्याग, आचरण, गुण और व्यवहार। आचार्य का कहना है कि मनुष्य को हमेशा इन्हीं पैमानों के आधार पर परखना चाहिए, तभी आप जज कर पाएंगे कि सामाने वाला इंसान सोने की तरह खरा है या फिर खरा होने का दिखावा करता है।
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कई बार मनुष्य सामने वाले को इन पैमानों के आधार पर नहीं बल्कि अपने मन मुताबिक यानी कि अगर उसे अपने अनुसार उसमें वो गुण दिखा तो वो सच्चा है वरना वो झूठा है। अगर आप भी सामने वाले को अपने बनाए इस आधार पर जज कर रहे हैं तो ऐसा ना करें। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जिस तरह से सोने का परीक्षण उसे घिसकर, काटकर, तपाकर और पीट कर किया जाता है उसी तरह मनुष्य का परीक्षण भी उसके त्याग, आचरण, गुण और उसके व्यवहार से किया जाना चाहिए।