आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार अशुभ कार्यों को न करने को लेकर है।
"अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि मनुष्य को किसी भी अशुभ कार्य को नहीं करना चाहिए। फिर चाहे अशुभ कार्य शुभ कार्यों से पहले किया गया हो या फिर शुभ कार्यों के बाद। यानी कि किसी भी हालात में इस तरह के कार्यों को करने से मनुष्य को बचना चाहिए। ऐसा करके वो खुद ही पाप का भोगी बन सकता है। फिर चाहे वो अशुभ कार्य मनुष्य ने एक बार किया हो या फिर बार बार किया हो।
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कई बार लोग दूसरों का बुरा करने की इच्छा रखते हैं। ऐसे में वो उन कार्यों को अंजाम देने की कोशिश करते हैं जो अशुभ होते हैं। इन कार्यों में खुद से किया गया कोई अशुभ काम या फिर किसी द्वारा कराया गया अशुभ कार्य शामिल है। जैसे घर से किसी के बाहर निकलते वक्त जानबूझकर पानी डालना, घर के बाहर खाली बाल्टी रख देना, किसी के जाते ही तुरंत नहा लेना जैसे कार्य अशुभ कार्यों में आते हैं। वहीं कुछ कार्य अंजाने में भी होते जिन्हें अशुभ ही माना जाता है। जैसे किसी के जाते वक्त छींक देना, बिल्ली का रास्ता काटना और किसी को नींबू मिर्च एक साथ देना।
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इसके अलावा कुछ अशुभ कार्यों को करने और अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए मनुष्य तंत्र मंत्र का भी सहारा लेता है। ऐसे कार्य जानबूझकर किए जाते हैं। वैसे तो किसी भी तरह के अशुभ कार्य नहीं किए जाने चाहिए। इस तरह के कामों को करने वाले व्यक्ति की सोच पर भी बुरा असर पड़ता है और जिंदगी भर इन्हीं सब में फंसकर रह जाता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि किसी भी तरह के अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए।