आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार संस्कार पर आधारित है।
'बुढ़ापे में आपको रोटी औलाद नहीं बल्कि आपके दिए हुए संस्कार ही खिलाएंगे।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि संस्कार एक ऐसी चीज है जो माता पिता बच्चों को बचपन से देते हैं। ये संस्कार ही वो कुंजी हैं जो मनुष्य की नींव होते हैं। जिस तरह से किसी भी मकान को बनवाते वक्त उसकी नींव पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है ठीक उसी तरह बच्चे और संस्कार का एक दूसरे से कनेक्शन है।
मनुष्य की इस एक चीज में छिपा है सफलता और असफलता का मंत्र, एक चूक कर देगी सब खत्म
जब किसी भी मकान की नींव कमजोर होती है तो उसका टिक पाना मुश्किल होता है। वो तेज हवाओं से भी प्रभावित हो सकता है और ढह सकता है। जिसकी वजह उसकी नींव में खोट होना है। किसी भी बच्चे के जन्म से ही उसे संस्कार दिए जाते हैं। बड़ों को सम्मान देना, छोटों से प्यार करना, सही और गलत की पहचान कराना और उठने बैठने से लेकर छोटी से छोटी चीज पर ध्यान देना। माता पिता ये सब चीजें बच्चों को उनके जन्म से ही सिखाने लगते हैं। तभी आगे जाकर मनुष्य संस्कारी बन सकता है।
अगर मनुष्य के स्वभाव में शामिल हो गईं ये चीजें, तो उसकी हार निश्चित
अगर बच्चों की बचपन में की गई किसी भी गलती को आपने बढ़ावा दिया तो वो आगे चलकर आप पर ही भारी पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चे को लगेगा कि उसने जो किया वो सही किया। कई बार बच्चों को ऐसा भी लगने लगता है कि हम कुछ भी क्यों ना कर लें, हमारे माता पिता हमसे इतना ज्यादा प्यार करते हैं कि वो हमें बचा ही लेंगे। ये बात अगर किसी बच्चे के मन में आ जाए तो वो आगे चलकर माता पिता के लिए मुसीबत का कारण बन सकती है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि बुढ़ापे में आपको रोटी औलाद नहीं बल्कि आपके दिए हुए संस्कार ही खिलाएंगे।