संसार के हर एक इंसान के लिए जन्म देने वाली मां सबसे ऊंचे स्थान में होती है। जिसके बाद ही कोई दूसरा आता है। एक मां अपने बच्चे की खुशी और सुरक्षा के लिए हर एक चीज न्योछावर कर देती हैं। अगर बच्चा खुश होता है तो मां भी खुश होती है। एक बच्चे की सबसे पहली गुरु मां ही मानी जाती है। उसके जन्म से लेकर पूरा बचपन मां के साथ बीतता है। एक मां ही अपने बच्चे को संस्कार आदि सिखाती हैं। आचार्य चाणक्य मां को सम्माननीय बताया है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार मां के साथ-साथ हर स्त्रियों को भी पूरा सम्मान मिलना चाहिए। किसी भी महिला का अनादर करना घोर पाप होता है। इसके साथ ही आचार्य चाणक्य ने ऐसी महिलाओं के बारे में बताया है जिन्हें हर किसी को मां का समान सम्मान और आदर देना चाहिए।
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श्लोक-
राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्र पत्नी तथैव च
पत्नी माता स्वमाता च पञ्चैता मातरः स्मृता
राजा की पत्नी
आचार्य चाणक्य के अनुसार जब किसी राज्य में कोई शासक होता है तो वह अपनी प्रजा के लिए वह हर एक काम करता है जिससे वह खुशी रहे। जिसके कारण उसे पिता समान माना जाता है। ऐसे में उसकी पत्नी मां समान हुई। इसलिए राजा के साथ-साथ रानी को भी मां के समान आदर देना चाहिए।
गुरु की पत्नी
मां के बाद गुरु ही वह व्यक्ति होता है जो एक बच्चे को सही और गलत का रास्ता दिखाता है। जिससे वह अपनी बुलंदियों को छूता है। इसी कारण उसकी तुलना पिता के रूप में की जाती है। ऐसे में गुरु की पत्नी मां के समान मानी जानी चाहिए।
मित्र की पत्नी
मित्र की पत्नी को भाभी का दर्जा दिया है। भाभी को भी मां समान माना जाता है। इसलिए घर पर मौजूद भाभी को मां समान मानना चाहिए। इससे आपका सम्मान दूसरों की नजरों में बढ़ेगा।
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पत्नी की मां
जिस तरह किसी पुरुष की मां का सम्मान होता है। वैसे ही पत्नी को जन्म देने वाली मां का भी अपनी माता के समान होती है। इसलिए हर व्यक्ति को अपनी मां की तरह की पत्नी की मां का सम्मान और प्यार देना चाहिए।
अपनी मां
आचार्य चाणक्य के अनुसार पांचवी मां को स्वयं की मां को कहा जाता है। जिससे आपको एक आकार और अस्तित्व दिया है। जो आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए रास्ता दिखता है। रास्ते में आए हर दुख को खुद सह कर आपको खुश रखती हैं। ऐसा मां पुज्नीय मानी जाती है। कभी भी इनका अनादर ना करें।