आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार चालाकी पर आधारित है।
'जितने तुम चतुर होते जाते हो उतना ही तुम्हारा दिल मरता जाता है।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि जो मनुष्य जरूरत से ज्यादा चालाक हो जाता है उसके अंदर की आत्मा खत्म हो जाती है। यानी कि ऐसे व्यक्ति का दिल किसी मरे हुए व्यक्ति के समान है।अंतर सिर्फ इतना है कि मरा हुआ व्यक्ति कभी वापस नहीं आता और ऐसा व्यक्ति संसार में रहकर भी मरे हुए के समान है।
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दरअसल, मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपनी भावनाओं को अच्छे से व्यक्त कर सकता है। ये भावनाएं मनुष्य के दिल में भरी होती हैं। अगर मनुष्य जरूरत से ज्यादा चालाक हो जाता है तो उसकी ये भावनाएं धीरे धीरे खत्म हो जाती हैं। ये कहें कि चालाकी इन सभी भावनाओं पर इस कदर हावी हो जाती है कि उसे अपने सामने कुछ भी नहीं दिखता।
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ऐसा व्यक्ति धीरे धीरे लोगों से दूर होने लगता है। यहां तक कि लोग भी ऐसे व्यक्ति से कटने लगते हैं। इसके साथ ही ऐसा व्यक्ति समाज में सम्मान की नजर से नहीं देखा जाता। यहां तक कि इस व्यक्ति के अपने भी पराए होने लगते हैं। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जितने तुम चतुर होते जाते हो उतना ही तुम्हारा दिल मरता जाता है।