आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार इस बाद पर आधआरित है कि वो कौन से अवगुण हैं जो इंसान की बुद्धि भ्रष्ट कर देते हैं।
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'अहंकार, वासना और लालच इंसान की बुद्धि को पूरी तरह भ्रष्ट कर देते हैं' आचार्य चाणक्य
आचार्य ने कुछ ऐसे गुणों का जिक्र किया है जो व्यक्ति की बुद्धि को पूरी तरह भ्रष्ट कर देते हैं और उसे कुछ दिखाई नहीं देता। ये अवगुण हैं अहंकार, वासना और लालच। एक अहंकारी व्यक्ति को कभी सही और गलत का फर्क नजर नहीं आता क्योंकि उसे लगता है कि वो जो भी करता है सही ही करता है। जो लोग वासना के अधीन हैं, उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता। इसके अलावा लालच में पड़ा व्यक्ति हर जगह पैसे को पाने की तरकीब लगाता है। उसकी नजर दूसरों के पैसों पर टिकी रहती है। उसे अपने काम में अच्छा या बुरा दिखाई नहीं देता।
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आचार्य का कहना था कि अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो हमेशा धर्म के मार्ग पर चलें और बुद्धिमान व्यक्ति की तरह अपनी इंद्रियों को वश में रखें। अपने मन को वश में रखें। सीखने की आदत को कभी न छोड़ें। अगर व्यक्ति चाहे तो इंसान से ही क्या, जानवरों से भी काफी कुछ सीखा जा सकता है। जैसे गधे से तीन बातें सीखी जा सकती हैं –अपना बोझ ढोना न छोड़ें, लक्ष्य प्राप्ति के बीच सर्दी-गर्मी की चिंता न करें और हर परिस्थिति में संतुष्ट रहें।