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चाणक्य नीति: अपनी बर्बादी का कारण बनते हैं ऐसे लोग, इससे बचने के लिए इन बातों को जानना है जरूरी

चाणक्य नीति: खुशहाल जिंदगी के लिए आचार्य चाणक्य ने कई नीतियां बताई हैं। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो चाणक्य के इन सुविचारों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: April 16, 2021 15:52 IST
chanakya niti - India TV Hindi
Image Source : INDIA TV चाणक्य नीति 

सुखी जीवन की परिकल्पना हर मनुष्य की होती है। हर कोई चाहता है कि उसके जीवन पर दुख की छाया बिल्कुल भी न पड़ें। उसका हर एक पल सुख से भरा हो। वास्तविक जीवन में मनुष्य की ये कल्पना सिर्फ सोच मात्र है क्योंकि जीवन में सुख और दुख दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। अगर जीवन में सुख है तो दुख भी आएगा और दुख है तो सुख का आना भी निश्चित है। इसी सुखी जीवन को लेकर आचार्य चाणक्य ने कुछ नीतियां और अनुमोल विचार व्यक्ति किए हैं। ये विचार आज के जमाने में भी प्रासांगिक हैं। आचार्य चाणक्य के इसी विचारों में से एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार भाग्य के विपरीत होने पर है। 

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आत्मद्वेषात् भवेन्मृत्यु: परद्वेषात् धनक्षय: । 

राजद्वेषात् भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषात् कुलक्षय: ।। 

इस श्लोक का मतलब है कि जो इंसान अपनी ही आत्मा से द्वेष रखता है वह खुद को नष्ट कर लेता है। दूसरों से ईर्ष्या या द्वेष रखने से स्वयं के धन की हानि होती है। राजा से द्वेष रखने से व्यक्ति खुद को बर्बाद करता है और ब्राह्यणों से द्वेष रखने से कुल का नाश होता है।

चाणक्य कहते हैं जो बिना किसी स्वार्थ निष्पक्ष भाव से बोले वह आप्त है। आत्मा की आवाज और आप्त वाक्य एक ही बात है। शास्त्रों के अनुसार, इंसान अपना सबसे बड़ा मित्र और दुश्मन है। इसी तरह से आप्त यानी विद्वानों से द्वेष रखने वाला व्यक्ति भी बर्बाद हो जाता है।

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'आत्मद्वेषात्' की बजाए कुछ जगह पर 'आप्तद्वेषात्' शब्द का प्रयोग किया गया है। इसे पाठभेद कहते हैं। आप्त का अर्थ ज्ञानी, विद्वान, ऋषि और 'आप्तस्तु यथार्थवक्ता' का अर्थ सिद्ध पुरुष है। यानी जो सत्य बोले वह आप्त है, जो आत्मा के करीब है वही आप्त है।

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