आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार बुद्धिमान बनने के उपाय पर आधारित है।
'थोड़ा पढ़ना, अधिक सोचना, कम बोलना और अधिक सुनना- ये बुद्धिमान बनने के लिए उपाय है।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि बुद्धिमान बनने के लिए इन चार चीजों का होना बेहद जरूरी है। ये चार चीजें थोड़ा पढ़ना, अधिक सोचना, कम बोलना और अधिक सुनना हैं। जिस व्यक्ति में ये चार चीजें कूट कूटकर भरी होती हैं उसका बुद्धिमान बनना तय है। कई बार जिंदगी में ऐसे मौके आते हैं जब इंसान को समय-समय पर अपनी बुद्धिमानी का परिचय देना होता है। जब किसी मुसीबत से पार पाना हो तो मनुष्य उसका हल ज्यादा सोच विचार से काफी हद तक निकाल सकता है।
दूसरा है कम बोलना। मनुष्य को हमेशा कम बोलना चाहिए। कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं जो बहुत ज्यादा बोलते हैं। अक्सर ऐसा होता है जो लोग बहुत ज्यादा बोलते हैं वो कई लोगों की बातों को नजरअंदाज कर देता है। कई बार तो लोग ऐसे लोगों से कतराने भी लगते हैं। ऐसे में जरूरी है कि मनुष्य को कम बोलना चाहिए।
इस सच से कोसों दूर भागता है मनुष्य वहीं इस धोखे को हमेशा मानता है सच
तीसरा है थोड़ा पढ़ना। मनुष्य हमेशा अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए किताबों को पढ़ना पसंद करता है। लेकिन आचार्य का कहना है कि मनुष्य को थोड़ा ही पढ़ना चाहिए। ऐसा करने में ही उसकी समझदारी है।
चौथा है अधिक सुनना। मनुष्य को हमेशा दूसरों की बातें सुनकर उससे ज्ञान अर्जित करते रहना चाहिए। ऐसा करने वाला मनुष्य ही अपने अंदर के ज्ञान को और बढ़ा सकता है। इसलिए अगर आप दूसरों की बातों को हमेशा ध्यान से सुनें और अच्छी बातों को अपने अंदर उतारने की कोशिश करें। अगर आप इन चारों चीजों को सही से फॉलो करते हैं तो आप सही में बुद्धिमान हैं। ये सारी चीजें ना केवल आपको बुद्धिमान बनाएंगी बल्कि आपको एक अच्छा इंसान भी बनाने में मददगार होंगी।