आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार अस्थिर मन वाले की सोच पर आधारित है।
"अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती।" आचार्य चाणक्य
इस कथन में आचार्य चाणक्य कहना चाहते हैं कि जिस व्यक्ति का मन चलायमान रहता है उसकी सोच कभी भी स्थिर नहीं हो सकती। ऐसा व्यक्ति अपनी किसी भी सोच पर अडिग नहीं रह सकता। इस तरह की सोच का उदाहरण असल जिंदगी में देखा गया है। कई बार आपका सामना जिंदगी में ऐसे व्यक्तियों से होता है जिनका मन किसी एक चीज पर टिकने वाला नहीं होता। यानी कि पल में वो कुछ सोचते हैं और दूसरे ही पल उनकी सोच बदल जाती है। ऐसे व्यक्ति का मन अस्थिर होता है।
मन का अस्थिर होना जीवन में कई बार मनुष्य के लिए मुसीबत भी बन सकता है। उदाहरण के तौर पर जैसे कि आपने किसी व्यक्ति से कोई बात कही, सामने वाला आपकी बात से सहमत हो गया। दूसरे दिन जब आप उस व्यक्ति से मिले तो इस मामले में आपके समक्ष वो नई सोच के साथ मिला। आप जैसे-तैसे उसकी बात से सहमत हुए। फिर अगले दिन आपका उससे सामना एक नई सोच के साथ हुआ।
ऐसा होने पर सबसे पहले तो व्यक्ति सामने वाला का विश्वास खोता है। इसके साथ ही कई बार वो सबसे सामने हंसी का पात्र भी बन जाता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य को हमेशा अपने मन को कंट्रोल में करना चाहिए। अगर मन कंट्रोल में होगा तो आपकी सोच भी स्थिर होगी। यानी मन और सोच दोनों का काफी गहरा कनेक्शन है। इसीलिए हमेशा अपने मन को अपने कंट्रोल में रखिए। ऐसा करने से सोच स्थिर होगी और आप लोगों का विश्वास बरकरार रख पाएंगे।