आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार किन लोगों को कब परखना चाहिए इस पर आधारित है।
'सेवक को तब परखें जब वह काम ना कर रहा हो, रिश्तेदार को किसी कठिनाई में, मित्र को संकट में और पत्नी को घोर विपत्ति में।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य ने जिंदगी में चार लोगों को कब परखना चाहिए इसके बारे में अपने इस कथन में बताया है। आचार्य चाणक्य का कहना है कि सेवक को उस वक्त परखना चाहिए जब वह काम ना कर रहा हो। आजकल ज्यादातर लोगों के घरों में नौकर चाकर लगे होते हैं। कुछ सेवक तो ऐसे होते हैं जो घर के सदस्य की तरह होते हैं। घर का कोई फंक्शन हो या फिर कोई भी त्योहार हो सेवक का सबसे ज्यादा सम्मान होता है।
घर के लोग खुले दिल से उसे अपनी इच्छा से जो देना चाहते हैं वो देते हैं। लेकिन वो सेवक आपका कितना हितैशी है उसे परखना का सबसे सही मौका तब होता है जब वो काम ना कर रहा हो। ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त उसका मन शांत होता है और वो आपकी बात का जवाब सोच समझकर देगा।
इसके अलावा रिश्तेदार को किसी कठिनाई में परखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि विपत्ति आने पर कौन आपका कौन पराया है ये साबित हो जाता है। आचार्य का कहना है कि यही सही मौका होता है जब आप अपने रिश्तेदारों को परख सकते हैं। वहीं मित्र को संकट में परखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि अच्छे वक्त में तो आपके साथ सब होते हैं लेकिन संकट के समय जो मित्र आपके साथ है वहीं आपका सच्चा दोस्त हैं।
वहीं अगर आप सात जन्मों का साथ देने वाली पत्ती को भी परखना चाहते हैं तो विपत्ति सबसे बेस्ट मौका है। क्योंकि वैसे तो पत्नी पति का हर सुख दुख में साथ देने का वादा करती है। लेकिन अगर फिर भी आप अपनी पत्नी को जीवन की कसौटी पर परखना चाहते हैं तो उसका सही वक्त विपत्ति ही है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य का कहना है कि सेवक को तब परखें जब वह काम ना कर रहा हो, रिश्तेदार को किसी कठिनाई में, मित्र को संकट में और पत्नी को घोर विपत्ति में।