आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार आज के समय में भी प्रासांगिक हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता चाहता है तो उसे इन विचारों को जीवन में उतारना होगा। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार किसी भी चीज की अधिकता अच्छी नहीं है इसी पर आधारित है।
'हर वो चीज जो जिंदगी में आवश्यकता से अधिक होती है वही जहर है। फिर चाहे वो ताकत हो, धन हो, भूख हो, आलस हो, अभिमान हो, महत्वाकांक्षा हो, प्रेम हो, घृणा हो।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य का कहना है कि मनुष्य के जीवन में किसी भी चीज की अधिकता जहर के समान है। ऐसा इसलिए क्योंकि जरूरत से ज्यादा अगर किसी भी चीज की अधिकता मनुष्य के मन में सबसे पहले घमंड लेकर आती है। वो अपने आप को सातवें आसमान पर समझने लगता है। कई बार तो उसका व्यवहार, बातचीत का तरीका और अपनों से रिश्ते तक दांव पर लग जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर इन चीजों में ताकत, धन, भूख, आलस, अभिमान, महत्वाकांक्षा, प्रेम और घृणा हैं। इनमें से अगर इंसान के पास किसी भी एक चीज की अधिकता हो जाए तो सही और गलत के बीच का अंतर ही भूल जाता है। इसके साथ ही सबसे पहले उसकी बुद्धि काम करना बंद कर देती है। उसे ऐसा लगता है कि वो जो सोच रहा है वही सही है, वो बाकी लोगों की बातों को अपने सामने कुछ भी नहीं समझता। कई बार तो मनुष्य अपने हाथों ही अपने घर में अपने कर्मों से आग लगा देता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य का कहना है कि हमेशा मनुष्य के पास चीजें उतनी ही हो जितनी कि उसे जरूरत हो। जरूरत से ज्यादा कोई भी चीज मनुष्य के जीवन में जहर का काम करती है।
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