आचार्य चाणक्य की नीतियां और अनुमोल वचनों को जिसने जिंदगी में उतारा वो खुशहाल जीवन जी रहा है। अगर आप भी अपने जीवन में सुख चाहते हैं तो इन वचनों और नीतियों को जीवन में ऐसे उतारिए जैसे पानी के साथ चीनी घुल जाती है। चीनी जिस तरह पानी में घुलकर पानी को मीठा बना देती है उसी तरह से विचार आपके जीवन को आनंदित कर देंगे। आचार्य चाणक्य के इन अनुमोल विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। ये विचार अहम पर आधारित है।
'झुको केवल उतना ही जितना सही हो। बेवजह झुकना केवल दूसरों के अहम को बढ़ावा देता है।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के कहने का मतलब है कि किसी के भी सामने उतना ही झुकना चाहिए जितना ठीक हो। कई बार जरूरत से ज्यादा रिश्तों को दिया गया मान आपके सिर का दर्द ही बन जाता है। कई बार तो आपको बेवजह भी झुकना पड़ता है। ऐसा करके आप सिर्फ और सिर्फ दूसरे के अहम को बढ़ावा देते हैं।
दरअसल, कई बार लोग अपने सगे संबंधियों का ध्यान रखकर जरूरत से ज्यादा उन्हें मान सम्मान देते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि ये लोग अपने हैं। इसके साथ ही उनसे दिल का रिश्ता भी जुड़ जाता है। ऐसे में कई बार होता है कि आप दूसरों की उन चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं जो एक पल में आपको बुरी भी लगती हों। उस वक्त आपके मन में सिर्फ यही होता है कि कोई बात नहीं ये तो अपने हैं।
समय के साथ लोगों के साथ करीबियों से आपका दिल का रिश्ता मजूबत हो जाता है। हालांकि सामने वाले के साथ भी ऐसी ही होता है। लेकिन कई मौके ऐसे होते हैं कि सामने वाला आपको कई बार जानबूझकर तो कई बार अनजाने में अपना अहम आप पर थोपने की कोशिश करता है। एक-दो बार आप ऐसा होने भी देते हैं, सिर्फ ये सोचकर कोई बात नहीं ये तो हमारे अपने हैं।
लगातार ऐसा होता देख कहीं ना कहीं मन में शंका का बीज आपके भी आ जाता है। जो कि लाजमी भी है। ना चाहते हुए भी आपका मन सामने वाले के अहम को बखूबी समझ जाता है। अगर आप उस वक्त भी उस इंसान के अहम को और बढ़ावा देंगे तो ऐसा करना आपके लिए ठीक नहीं है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि झुको केवल उतना ही जितना सही हो। बेवजह झुकना केवल दूसरों के अहम को बढ़ावा देता है।
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