आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार जीवन की सच्चाई और रिश्तेदारों पर आधारित है।
'चार रिश्तेदार एक दिशा में तब ही चलते हैं, जब पांचवा कंधे पर हो। पूरी जिंदगी हम इसी बात में गुजार देते हैं कि चार लोग क्या कहेंगे और अंत में चार लोग बस यही कहते हैं कि राम नाम सत्य है।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन मतलब है जिंदगी भर मनुष्य अपने रिश्तेदारी निभाते हुए ही गुजार देता है। वो सभी रिश्तेदारों को एक ही दिशा में चलाने के बारे में विचार करता रहता है लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। लेकिन चार रिश्तेदार तभी एक दिशा में चलते हैं जब पांचवा कंधे पर हो। चार लोग क्या कहेंगे क्या सोचेंगे और यही सोचते-सोचते जीवन बीत जाता है लेकिन आखिर में ये चार रिश्तेदार तभी एक दिशा में चलते हैं जब मनुष्य की अंतिम यात्रा हो।
जन्म लेते ही मनुष्य कई रिश्तों से जुड़ जाता है। माता-पिता और भाई बहन के अलावा कुछ और रिश्ते होते हैं जिनकी डोर बहुत नाजुक होती है। मनुष्य हमेशा किसी भी फैसले को लेने से पहले उन रिश्तेदारों के बारे में जरूर सोचता है। वो ये सोचता है कि लोग क्या कहेंगे, फिर चाहे वो फैसला उसकी खुद की जिंदगी से जुड़ा ही क्यों न हो। कई बार तो इस वजह से वो अपनी खुशियां भी दांव पर लगा देता है। वो ये सब यही सोचकर करता है कि मुश्किल वक्त आने पर यही रिश्तेदार उसके साथ खड़े होंगे। उसकी सुनेंगे और उसे समझेंगे। कई बार तो कुछ रिश्तेदार हमेशा साथ देतें हैं लेकिन कुछ ऐसे होते हैं कि जो सिर्फ नाम के होते हैं।
यानी कि वो उस मौके की तलाश में रहते हैं जब आप पर कमेंट करने का मौका ढूंढे। फिर चाहे आपने उनके लिए कुछ भी क्यों न किया हो। इसलिए अच्छा तो यही है कि आप अपने माता-पिता और भाई बहन के अलावा बाकी क्या सोंचेगे और कहेंगे इस पर ध्यान न दें। ऐसा करके आप अपनी उन खुशियों को दांव पर लगा देते हैं जो आपके नसीब में है।
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