आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार अपनों को खाना खिलाकर बचे हुए भोजन से अपनी भूख शांत करने पर आधारित है।
''स्वजनों को तृप्त करके शेष भोजन से जो अपनी भूख शांत करता है, वो अमृत भोजी कहलाता है।'' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि कुछ लोग सबसे पहले अपने करीबियों को भोजन खिलाकर उनकी भूख शांत करते हैं। इसके बाद उनके पास खाने को जो कुछ भी बचता है वो खुद खाते है्ं। ऐसा भोजन अमृत भोजन होता है। मान्यताओं के अनुसार भूखे को भोजन खिलाना सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। जो व्यक्ति स्वयं की नहीं बल्कि पहले दूसरों की भूख को शांत करने का प्रयास करता है और बाद में जो भी खाना बचता है उसे खाता है। ऐसा भोजन अमृत भोजन कहा जाता है।
उदाहरण के तौर पर कई बार ऐसा होता है कि आपकी मां ने बड़े ही प्यार से घर में मौजूद लोगों की संख्या के आधार पर खाना बनाया। जैसे ही सब लोग खाने के लिए बैठे तो अचानक कोई करीबी रिश्तेदार आ गया। खाने के वक्त आए मेहमान से खाने को न पूछना उसका निरादर होता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि आपकी माता जी खाना परोसेंगी। ज्यादातर घरों में लोग नपातुला ही खाना बनाते हैं। ऐसे में मां मेहमान को खाना परोसते वक्त ये नहीं सोचती हैं कि अगर उसने सब परोस दिया तो उसके लिए क्या बचेगा।
मेहमान के खाना खाने के बाद कई बार बनाया हुआ खाना बचता है तो कई बार खाना नहीं बचता। ऐसे में मां दूसरों की खाने खिलाने के बाद जो भी खाना खाती है वो अमृत भोजन कहलाता है। फिर चाहे वो सूखी रोटी ही क्यों न हों। क्योंकि किसी भी भूखे को खाना खिलाना पुण्य से कम नहीं होता। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि स्वजनों को तृप्त करके शेष भोजन से जो अपनी भूख शांत करता है, वो अमृत भोजी कहलाता है।
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