आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भरे ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार कपटी मनुष्य के स्वभाव पर आधारित है।
ढेकुची नीचे सिर झुकाकर ही कुंए से जल निकालती है अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते हैं।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि जिस तरह कुएं से पानी निकालने के लिए सदैव तन कर खड़ी रहने वाली ढेकुची नीचे झुकती है ठीक उसी प्रकार पापी व्यक्ति मीठे बोल बोलकर ही अपना काम निकालते हैं। यहां पर आचार्य चाणक्य ने कपटी या पापी व्यक्ति की तुलना सिंचाई के लिए कुएं से पानी निकालने वाली ढेकुची से की है।
आचार्य का कहना है कि ढेकुची हमेशा तनकर खड़ी रहती है। उसे झुकना बिल्कुल भी पसंद नहीं है लेकिन जब बात कुएं से पानी निकालने की आती है तो वो अपने आप में बदलाव लाती है। अपने स्वभाव के विपरीत झुकती है और कुएं से पानी निकालकर फिर से उसी तरह सीधा खड़ी हो जाती है। यानी कि पानी निकालने का कार्य खत्म और ढेकुची अपने स्वभाव के अनुसार फिर से वैसी ही स्थिर हो जाती है जैसा कि उसकी प्रवृत्ति में शामिल है।
इस ढेकुची की तरह की पापी या कपटी मनुष्य भी होते हैं। जब ऐसे व्यक्ति को किसी से अपना काम निकल वाना पड़ता है तो अपने स्वभाव के विपरीत चलता है। अपने स्वभाव में ये बदलाव वो इसलिए लाता है ताकि वो अपना काम करवा सके। काम खत्म होने के बाद वो उस मनुष्य से ऐसे बात करेगा जैसे कि वो उसे जानता तक न हो। इसीलिए आचार्य चाणक्य का कहना है कि ढेकुची और कपटी मनुष्य दोनों ही अपना काम सिद्ध करने के लिए एक ही तरह बर्ताव करते हैं। यहां तक कि मनुष्य को अपने ऐसे बर्ताव का बिल्कुल भी पछतावा भी नहीं होता।
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