आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार आज के समय में भी प्रासांगिक हैं। अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफलता चाहता है तो उसे इन विचारों को जीवन में उतारना होगा। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार आत्मविजयी पर आधारित है।
"आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का मतलब है कि आत्मविजयी व्यक्ति हर तरह की संपति एकत्र करने में समर्थ होता है। यहां पर आचार्य चाणक्य का कहना है जिस मनुष्य ने अपनी इंद्रियों पर कंट्रोल कर लिया वो किसी भी तरह की संपत्ति को जुटा सकता है। हालांकि ऐसा करना मुश्किल जरूर है लेकिन नामुमकिन नहीं।
मनुष्य की इच्छाएं बहुत होती है। जो भी जितना भी उसके पास हो उससे ज्यादा उसे पाने की इच्छा होती है। यही इच्छा उससे हमेशा तनाव में रखती है जिससे उसका मन कभी भी शांत नहीं होता। ऐसा व्यक्ति न केवल परिवार बल्कि अपने बाकी करीबियों से दूर होता चला जाता है। ऐसा व्यक्ति आत्मविजयी नहीं होता यानी कि इंद्रियों पर उसका कोई कंट्रोल नहीं होता। इसके विपरीत आत्मविजयी इंसान अपनी सभी इच्छाओं को नियंत्रित कर लेता है तभी वो व्यक्ति आत्मविजयी कहलाता है।
पैसा, लालच, स्वाद के अलावा जितनी भी इच्छाएं है वही मनुष्य को रह-रहकर परेशान करती हैं। ऐसे में जिस किसी व्यक्ति ने इन इच्छाओं को नियंत्रित कर लिया तो उससे ज्यादा धनी इंसान कोई नहीं है। अगर आप भी जिंदगी में हमेशा खुश रहना चाहते हैं तो आचार्य चाणक्य के इस विचार को गांठ बांधकर जीवन में उतार लें। ऐसा करके ही आप सारी संपत्ति को एकत्र करने में समर्थ हो पाएंगे। किसी भी चीज के पीछे भागने से हाथ हमेशा खाली ही रह जाते हैं। इसी वजह से आचार्य चाणक्य का कहना है कि आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।
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