आचार्य चाणक्य ने सफल जीवन जीने की कई नीतियां और अनमोल विचार दिए हैं। इन नीतियों और विचारों को जीवन में उतार कर कोई भी व्यक्ति सफलता का मुकाम हासिल कर सकता है। आज हम आचार्य चाणक्य के अनमोल विचारों में से एक विचार का विश्लेषण करेंगे।
एक समझदार आदमी को सारस की तरह होश से काम लेना चाहिए और जगह, वक्त और अपनी योग्यता को समझते हुए अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य ने इन लाइनों में किसी भी परिस्थिति में होश से काम लेने की शिक्षा दी है। इसका सबसे बड़ा और सटीक उदाहरण लोमड़ी और सारस की कहानी है। इस कहानी का सार यही है कि कैसे चालाक लोमड़ी से अपमानित होने के बाद भी सारस ने अपना होश नहीं खोया। उसने होश से काम लिया और सही जगह और सही मौका देखकर लोमड़ी को सबक सिखाया।
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सारस और लोमड़ी की कहानी आज भी प्रासांगिक है। इस कहानी में सारस और लोमड़ी की दावत का जिक्र है। लोमड़ी ने सारस को दावत पर बुलाया और सूप को एक प्लेट में परोसा। लोमड़ी तो झट से सारा सूप पी गई लेकिन लंबी चोंच की वजह से सारस भूखा ही रह गया। सारस ने उस वक्त तो लोमड़ी से कुछ नहीं कहा और बेइज्जती का घूंट पीकर वहां से चला गया। इसके बाद सारस ने लोमड़ी को दावत पर बुलाया और सूप को लंबी वाली गर्दन के बर्तन में परोसा। लोमड़ी उस सूप को पी नहीं पाई और सारस झट से सारा सूप चट कर गया।
जिस तरह सारस ने सही जगह और वक्त देखकर अपनी योग्यता को सिद्ध किया, ठीक उसी प्रकार मनुष्य को अपनी योग्यता सिद्ध करना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य क्रोध में अपने होश को गवा देता है। यानि कि उसकी सोचने और समझने की शक्ति उस वक्त मानो खत्म सी हो जाती है। क्रोध के वशीभूत होकर वो ऐसा कदम उठा लेता है जिसका पछतावा उसे बाद में होता है। इसलिए मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए। अगर किसी वजह से वो उसे गुस्सा आ भी रहा है तो मन को शांत करना चाहिए। इसके बाद ही किसी काम को सिद्ध करना चाहिए। ऐसा करने वो अपने जीवन को सफल बना सकता है।