आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार बदनामी पर आधारित है।
"सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।" आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि पूरी दुनिया में मनुष्य को अगर किसी एक चीज का डर रह रहकर सताता है तो वो एक चीज बदनामी है। ये एक ऐसी चीज है कि जिसका दाग अगर मनुष्य के दामन में एक बार लग गया तो वो उसका पीछा सातों जन्मों तक नहीं छोड़ती है। इसी वजह से मनुष्य अपने जीवन भर में इस दाग से बचने की लाख कोशिश करता है।
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बदनामी का डर मनुष्य के जीवन में पानी में मिले नींबू के रस की तरह घुल जाता है। उदाहरण के तौर पर जिस तरह से पानी में घुले नींबू के रस को आप उससे अलग नहीं कर सकते। ठीक इसी तरह से अगर बदनामी का दाग आपके दामन में लग गया तो आप चाह करके भी उससे पीछा नहीं छुड़ा पाएंगे।
दरअसल, बदनामी मनुष्य के दिमाग और जीवन पर इस कदर हावी हो जाती है कि वो समाज में अपने आपको को हीन भावना से देखने लगता है। यही हीन भावना उसे अंदर ही अंदर इतनी कचोटती है कि वो खुद को अपने परिवार और समाज से दूर करने लगता है। बदनामी के डर से उसकी जिंदगी बस चार दीवारी में ही कैद होकर रह जाती है।
इस स्वभाव वाले मनुष्य को हरा पाना है असंभव, चाहे कोई कर ले कितनी भी कोशिश
जीवन में कई बार ऐसे पड़ाव किसी की जिंदगी में आते हैं जब उसे बदनामी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उस व्यक्ति का मजाक उड़ान से अच्छा है कि आप उसे अपना कंधा दें। उसकी परेशानी समझें और उसे इस दुख से उबारने की कोशिश करें। अगर आप भी किसी व्यक्ति को जानते हैं जो बदनामी की आग में झुलस रहा तो उसके साथ बिल्कुल भी गलत व्यवहार न करें। ऐसा करके आप न केवल अपने बल्कि उस व्यक्ति के जीवन को भी खुशियों से भर सकते हैं।