आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का विचार शत्रु पर आधारित है।
'किसी खास प्रयोजन के लिए शत्रु मित्र बनता है।' आचार्य चाणक्य
कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका दोस्त बन जाता है। ऐसा होने पर मन में सवाल तो कई उठते हैं लेकिन दोस्त पाने की खुशी बहुत ज्यादा होती है। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ हो तो ये जान लें कि शत्रु अगर दोस्त बनता है तो उसका खास प्रयोजन हो सकता है।
असल जिंदगी में मनुष्य कई लोगों से मिलता है। उनमें से कुछ लोगों से मनुष्य की दोस्ती इतनी गहरी हो जाती है कि उनके दूर जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते। वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे आप बात करना भी पसंद नहीं करते। यहां कि अगर उनका चेहरा भी दिख जाए तो आपको गुस्सा आ जाता है। हालांकि कई बार ऐसा होता है कि कई बरस बीतने के बाद उनके प्रति आपके मन में गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन आप ये नहीं सोचते कि उनसे दोस्ती संभव है।
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कई बार कई बरस बीतने के बाद शत्रु अगर आपसे दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाता है तो आप बहुत खुश हो जाते हैं। लेकिन दोस्ती को स्वीकारते वक्त आप इस बात को जान लें कि ऐसा होना किसी खास प्रयोजन की ओर इशारा भी करता है। ऐसा इसलिए क्योंकि दुश्मन अगर दोस्त बनता है तो भले ही उसके साथ सब कुछ अच्छा हों, लेकिन बीते पलों की कड़वी यादें कभी भी पीछा नहीं छोड़ती। यहां तक कि वो अपने किसी मकसद को पूरा करने के लिए भी आपके सामने दोस्ती का हाथ बढ़ा सकता है। इसी वजह से मनुष्य को हमेशा सतर्क रहना चाहिए।