आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का ये विचार शब्दों पर आधारित है।
Chanakya Niti: बनना चाहते हैं बुद्धिमान तो ध्यान रखें 3 बातें
'शब्द भी एक भोजन है। शब्द शब्द का भी एक स्वाद है। बोलने से पहले चख लीजिए। स्वयं को अगर अच्छा ना लगे तो दूसरों को मत परोसिए।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि किसी से भी बात करते वक्त इस बात का ध्यान रखिए कि आप उससे किस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जो शब्द आपको सुनने में खुद अच्छे ना लगे वो दूसरों को कैसे अच्छे लग सकते हैं।
खुद की कमियों को स्वयं करें दूर, दूसरे सिर्फ उठाएंगे फायदा
असल जिंदगी में अक्सर ऐसा होता है कि मनुष्य दूसरों से बात करते वक्त अपने शब्दों पर ध्यान नहीं देता। उसे ऐसा लगता है कि जिन शब्दों का चुनाव उसने किया है वो एकदम ठीक है। लेकिन कई बार वो ये भूल जाता है जिन शब्दों का वो इस्तेमाल बिना सोचे समझे कर रहा है वो दूसरों को तकलीफ दे सकता है।
कई बार आपको खुद ये एहसास नहीं होता कि आप जिन शब्दों का चुनाव कर रहे हैं वो दूसरों को तकलीफों से भर सकता है। हमेशा इस बात का ध्यान रखिए कि जो शब्द आप इस्तेमाल कर रहे हैं दूसरों के लिए अगर वो आपके लिए कोई इस्तेमाल करें तो आपको कैसा लगेगा। अगर ये शब्द आपको सुनने में कड़वे लगेंगे तो दूसरों को ऐसे शब्द खराब लगना स्वाभाविक है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि शब्द भी एक भोजन है। शब्द शब्द का भी एक स्वाद है। बोलने से पहले चख लीजिए। स्वयं को अगर अच्छा ना लगे तो दूसरों को मत परोसिए।