आचार्य चाणक्य की नीतियां और विचार भले ही आपको थोड़े कठोर लगे लेकिन ये कठोरता ही जीवन की सच्चाई है। हम लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में इन विचारों को भले ही नजरअंदाज कर दें लेकिन ये वचन जीवन की हर कसौटी पर आपकी मदद करेंगे। आचार्य चाणक्य के इन्हीं विचारों में से आज हम एक और विचार का विश्लेषण करेंगे। आज का विचार है अव्यवस्थित तरीके से काम करने वाले लोगों पर आधारित है।
'अव्यवस्थित तरीके से कार्य करने वाला व्यक्ति ना तो समाज में सुख पाता है और ना ही वन में।' आचार्य चाणक्य
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि किसी भी काम को अगर सही तरीके से नहीं करेंगे तो मन अशांतरहता है। फिर वो काम व्यक्ति चाहे समाज में रहकर करे या फिर वन में, उसके मन को कभी भी शांति नहीं मिलती है।
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असल जिंदगी में कई तरह के लोग होते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो किसी भी काम को सही ढंग से करते हैं। फिर वो काम चाहे कोई भी क्यों ना हो। इन कामों में वो हर छोटे से छोटा काम आता है जो व्यक्ति अपनी असल जिंदगी में करता है। इन कामों में कपड़ों को तहाकर ठीक तरह से रखना, घर का जो समान जहां हैं उसे वहीं पर रखना। कई बार
ऐसे लोगों को देखकर अक्सर लोग तरह तरह की बातें करते हैं। अव्यवस्थित तरीके से कार्य करने वाला व्यक्ति ना तो समाज में सुख पाता है और ना ही वन में।
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कुछ लोग कहते हैं कि इस तरह से काम करने की जरूरत क्या है। तो वहीं कुछ लोग ऐसे लोगों को देखकर उनका मजाक उड़ाने की कोशिश भी करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वो अपना कोई भी काम सलीके से नहीं करते। उन्हें ना तो मन का सुकून होता है और ना ही दूसरों को ऐसा देखकर चैन मिलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वो ये सोचते हैं कि सामने वाला किस तरह से सारा काम व्यवस्थित तरीके से कर सकता है। यही सोच उसके मन में अंशाति का कारण बनती है। वहीं जो व्यक्ति हर काम को सलीके से करता है उसका मन हमेशा शांत रहता है। इसी वजह से आचार्य चाणक्य ने कहा है कि अव्यवस्थित तरीके से कार्य करने वाला व्यक्ति ना तो समाज में सुख पाता है और ना ही वन में।