नवरात्र के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करना बड़ा ही फलदायी बताया गया है | जो व्यक्ति दुर्गासप्तशती का पाठ करता है, वह हर प्रकार के भय, बाधा, चिंता और शत्रु आदि से छुटकारा पाता है | साथ ही उसे हर प्रकार के सुख-साधनों की प्राप्ति होती है | अतः नवरात्र के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करना चाहिए | दुर्गा सप्तशती का पाठ किस प्रकार करना है, उसकी सही विधि क्या है। जानें आचार्य इंदु प्रकाश से।
ऐसे करें दुर्गा मूर्ति या यंत्र स्थापित
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के लिये सबसे पहले संकल्प लेना पड़ता है | संकल्प लेने के लिये सुबह स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर श्री गणेश, मां दुर्गा आदि देवी-देवताओं को प्रणाम करके सबसे पहले कुश की पवित्रि धारण करनी चाहिए | पवित्रि एक प्रकार से कुश से बनी अंगूठी होती है, जिसे पूजा आदि से पहले अनामिका उंगली में धारण किया जाता है | अब दायें हाथ में पुष्प, अक्षत और जल लेकर इन मंत्रों के साथ संकल्प लें-
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ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य
श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे
वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे
भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने
प्रमाथीनामसंवत्सरे उत्तरायणेयबुध महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे चैत्रमासे
शुक्लपक्षे प्रतिपदातिथौ बुधवासरान्वितायाम् रेवतीनक्षत्रे मीनराशिस्थिते सूर्ये च
चन्द्रे एवं मकरराशिस्थितेषु भौमशनिषु कुम्भे बुधौ, मेषे शुक्रः तथा धनु राशि
स्थिते गुरौ सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ
पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः
कात्यायनगोत्रोत्पन्नः इन्दु प्रकाश शर्माः ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य
श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः
पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन
सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा
श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं
कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास
विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास-
धन्यान सहित चरित्र सम्बन्धिविनियोगन्यास ध्यानपूर्वकं च मार्कण्डेय उवाच॥
सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः। इत्याद्यारभ्य सावर्णिर्भविता मनुः,
इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं
वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये।
इस प्रकार संकल्प के बाद पीठ पर देवी मां की मूर्ति या दुर्गा यंत्र को स्थापित करना चाहिए | फिर नवपीठशक्तियों की पूजा करनी चाहिए | इसके बाद सबसे पहले मारीचकल्प के शापविमोचन मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए |
मंत्र है-
''ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।''
मारीचकल्प के इस शापविमोचन मंत्र के बाद शापोद्धार मंत्र का 7 बार पाठ करना चाहिए | मंत्र है-
''ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा''
शापोद्धार मंत्र के बाद उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाना चाहिए |
उत्कीलन मन्त्र है-
''ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।''
इस उत्कीलन मंत्र का 21 बार जाप करना चाहिए | 21 बार उत्कीलन मंत्र के जाप के बाद मृत संजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए | मृत संजीवनी मंत्र इस प्रकार है-
''ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।''
इस मृतसंजीवनी विद्या का सात बार जाप करने के बाद आखिर में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए। इस प्रकार पूरी विधि के अनुसार दुर्गासप्तशती का नवरात्र के दौरान पाठ करने से आपके सारे मनोरथ पूरे होंगे |