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भारत में नहीं, बल्कि इस देश में होगा हिंदूओं का पांचवा धाम

इन सभी मंदिरों के साथ जोड़ी में शिव के मंदिर भी हैं। बद्रीनाथ का जोड़ीदार केदारनाथ, द्वारका का सोमनाथ, रामेश्वरम का रंगनाथ स्वामी मंदिर और जगन्नाथ का लिंगराज मंदिर। जानिए अंकोरवाट मंदिर के बारें में सबकुछ।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : June 15, 2018 12:30 IST
 Ankorvata Temple
 Ankorvata Temple

धर्म डेस्क: हमारे देश भारत की संस्कृति और धार्मिक विरासत दुनियाभर में जाना जाता है। इतना ही नहीं हिंदू धर्म तेजी से विदेशों में भी फैलता जा रहा है। हाल में ही आरआरएस के सदस्यों द्वारा कम्बोडिया में स्थित अंकोरवाट मंदिर को हिंदू धर्म का पांचवा तीर्थ स्थल बनाने की बात पेश की गई है।

RSS के प्रवक्ता इन्द्रेश कुमार ने कहा कि अंकोरवाट जैसे हिंदू धर्म के प्राचीन मंदिर का गढ़ यानी कम्बोडिया हिन्दुओं का पांचवा तीर्थस्थान बनाया जाना चाहिए। इसमें आरएसएस से हाथ मिलाया है लंदन की एक कंपनी SRAM and MRAM ग्रुप के फाउंडर शैलेश हीरानंदानी ने. इस कंपनी की वेबसाइट के अनुसार यह कंपनी कम्बोडिया के खेती से जुड़े प्रोडक्ट 12 देशों में बेचती है।

जानिए क्यो माना जा रहा है अंकोरवाट मंदिर पांचवा तीर्थ धाम?

आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि कि हमारे 4 धाम बहुत ही खास है। पुराणों के अनुसार भगवान शिव और विष्णु बहुत ही प्रिय मित्र है। जिस स्थान पर भगवान विष्णु वास करते है। उशके आसपास ही भगवान शिव बी वास करते है। जिस तरह 4 चारों के आसपास दोनों के तीर्थ है। चार धाम के मंदिर पूर्व में जगन्नाथ पुरी, पश्चिम में द्वारका, उत्तर में बद्रीनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम हैं।

ये सभी मंदिर वैष्णव पंथ के लोगों द्वारा बनवाए गए हैं और भगवान विष्णु के मंदिर हैं। इन सभी मंदिरों के साथ जोड़ी में शिव के मंदिर भी हैं. बद्रीनाथ का जोड़ीदार केदारनाथ, द्वारका का सोमनाथ, रामेश्वरम का रंगनाथ स्वामी मंदिर और जगन्नाथ का लिंगराज मंदिर। जो कि हर-हरी की जोड़ी मानी जाती है। ऐसे में अंकोरवाट मंदिर फिट बैठेगा यह कहना थोड़ा मुश्किल है।

 Ankorvata Temple

 Ankorvata Temple

अंकोरवाट मंदिर
लगभग 1113 ई और 1150 ई के बीच बनी यह इमारत दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है। यह 500 एकड़ के क्षेत्र में बना है। अंकोरवाट का शाब्दिक अर्थ है 'मंदिरों का शहर'। यह खूबसूरत मंदिर हिन्दुओं के भगवान विष्णु के मंदिर के रूप में बना था। लेकिन 14वीं सदी में इसे बौद्ध धर्म के मंदिर में बदल दिया गया और भगवान बुद्ध की मूर्ती भी स्थापित की गई। अब यह UNESCO द्वारा विश्व की संरक्षित इमारतों में शामिल किया गया।

अगली स्लाइड में पढ़ें इस मंदिर के बारें में

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