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Buddha Purnima 2019: 502 साल बाद शनि-केतु और मंगल-राहु के दुर्लभ योग के साथ बुद्ध पूर्णिमा, ऐसे करें पूजा

502 सालों बाद बुद्ध पूर्णिमा पर मंगल-राहु मिथुन राशि में रहेंगे और उनके ठीक सामने शनि-केतु धनु राशि में स्थित हैं, ये एक दुर्लभ योग है। सूर्य और गुरु भी एक-दूसरे पर दृष्टि रखेंगे।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: May 17, 2019 13:10 IST
 buddha jayanti 2019- India TV Hindi
 buddha jayanti 2019

Buddha Purnima 2019: सनातन धर्म में वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। इस साल बुद्ध पूर्णिमा 18 मई, शनिवार को पड़ रही है। शास्त्रों में वैशाख पूर्णिमा का बड़ा ही महत्व है। आज के दिन रात 02 बजकर 22 मिनट तक विशाखा नक्षत्र भी है। दरअसल विशाखा नक्षत्र से युक्त होने के कारण ही इस पूर्णिमा को वैशाख पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा पर इस साल समसप्तक संयोग बन रहा है। इसके साथ 502 सालों बाद बुद्ध पूर्णिमा पर मंगल-राहु मिथुन राशि में रहेंगे और उनके ठीक सामने शनि-केतु धनु राशि में स्थित हैं, ये एक दुर्लभ योग है। सूर्य और गुरु भी एक-दूसरे पर दृष्टि रखेंगे।

दरअसल माना जाता है कि आज, यानी वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था।

इतने सालों बाद बन रहा है ऐसा संयोग

ज्योतिषचार्यो के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा पर ऐसा दुर्लभ योग 502 साल पहले 16 मई 1517 में बना था। उस समय भी मंगल-राहु की युति मिथुन में थी और शनि-केतु की युति धनु राशि में थी। इस संयोग में ही बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया गया था। आगे ऐसा संयोग 205 वर्ष बाद 2 जून 2224 को बनेगा।

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वैशाख पूर्णिमा का महत्व
वैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिव गंगा घाट पर स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलने के साथ-साथ जीवन में सुख-शांति आती है।

ऐसे करें भगवान बुद्ध की पूजा-अर्चना
माना जाता है कि इस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ करने से आपके सारे कष्ट दूर हो जाते है। क्योंकि इस त्यौहार को बहुत ही पवित्र और फलदायी माना गया है। इस दिन कुछ मीठा दान करने से गौदान को दान करने के बराबर फल मिलता है। इसके अलावा अगर आपसे अनजाने में कोई पाप हो गया है तो इस दिन चीनी और तिल का दान देने से इस पाप से छुटकारा मिल जाता है। जानिए इस दिन पूजा कैसे करते है। इस दिन पूजा करने के लिए सबसे पहले भगवान विष्णु के प्रतिमा के सामने घी से भरा पात्र रखें। इसके साथ ही तिल और चीनी भी रखें। फिर तिल के तेल  से दीपक जलाएं और भगवान की पूजा करें। इस दिन बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को कलरफूल पताकाएं और हार से सजाया जाता है। साथ ही जड़ो में दूध और सुगंधित जल डाला जाता है। साथ ही दीपक जलाएं जाते है।

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