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Bhaum Pradosh Vrat 2021: 26 जनवरी को भौम प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

मंगलवार होने के कारण भौम प्रदोष व्रत है। भौम का सीधा संबंध कर्ज से है यानि कि इस दिन व्रत करने से जातक को कर्ज से मुक्ति मिलेगा साथ ही मंगल सबंधी समस्यायों से भी छुटकारा मिलेगा।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: January 25, 2021 13:10 IST
Bhaum Pradosh Vrat 2021: 26 जनवरी को भौम प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/MAHADEV_NI_DIWANI_01 Bhaum Pradosh Vrat 2021: 26 जनवरी को भौम प्रदोष व्रत, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

पौष शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि और मंगलवार का दिन है। प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत किया जाता है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार रात्रि के प्रथम प्रहर को यानि सूर्यास्त के बाद के समय को प्रदोष काल कहा जाता है | प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल के समय जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है उसे जीवन में तरक्की ही तरक्की मिलती है। इस बार भौम प्रदोष व्रत 26 जनवरी को पड़ रहा है।

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार जिस दिन प्रदोष होता है, उस दिन के हिसाब से प्रदोष व्रत का नाम रखा जाता है क्योंकि इस बार मंगलवार होने के कारण भौम प्रदोष व्रत है। भौम का सीधा संबंध कर्ज से है यानि कि इस दिन व्रत करने से जातक को कर्ज से मुक्ति मिलेगा साथ ही मंगल सबंधी समस्यायों से भी छुटकारा मिलेगा।

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भौम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

पौष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 25 जनवरी को देर रात 12 बजकर 26 मिनट पर हो रहा है जोकि 26 जनवरी को देर रात 01 बजकर 11 मिनट तक है।

भौम प्रदोष व्रत  पूजा विधि

प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर सभी कामों से निवृत्त होकर भगवान शिव का स्मरण करें। इसके साथ ही इस व्रत का संकल्प करें। इस दिन भूल कर भी कोई आहार न लें। शाम को सूर्यास्त होने के एक घंटें पहले स्नान करके सफेद कपडे पहनें। इसके बाद ईशान कोण में किसी एकांत जगह पूजा करने की जगह बनाएं। इसके लिए सबसे पहले गंगाजल से उस जगह को शुद्ध करें फिर इसे गाय के गोबर से लिपे। इसके बाद पद्म पुष्प की आकृति को पांच रंगों से मिलाकर चौक को तैयार करें। इसके बाद आप कुश के आसन में उत्तर-पूर्व की दिशा में बैठकर भगवान शिव की पूजा करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करें साथ में ऊं नम: शिवाय: का जाप भी करते रहें। इसके बाद विधि-विधान के साथ शिव की पूजा करें फिर इस कथा को सुन कर आरती करें और प्रसाद सभी को बाटें।

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भौम प्रदोष व्रत कथा

स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया।

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती।

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