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ऐसे व्यक्ति के मन से जड़ से खत्म हो जाता है डर और क्रोध, गीता के इन 5 उपदेशों में छिपा है जीवन का मूलमंत्र

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत गीता में कुछ उपदेश दिए हैं। अगर आप अपनी जिंदगी में सुख और शांति चाहते हैं तो भगवत गीता के इन उपदेशों को अपने जीवन में जरूर उतारिए।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: July 26, 2020 13:57 IST
Bhagavad Gita- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Bhagavad Gita

श्रीमद्भगवतगीता में जो भी उपदेश दिए गए हैं हर एक वचन में जीवन का एक सार छिपा हुआ है। जिस व्यक्ति ने इसे जान लिया वहीं व्यक्ति हमेशा सफलताओं की सीढ़ी में चढ़ता चला जाता है। गीता के इन वचनों के बारे में हर एक व्यक्ति को जानना बहुत ही जरूरी हैं तभी इंसान सही राह में चलकर खुशहाल जीवन जी सकता है। इसी क्रम में हम आज आपको बताने जा रहे हैं गीता के 5 अनमोल वचन जिन्हें जानकर आप हर परेशानियों से आराम से निकल सकते हैं। 

ये शरीर नश्वर है

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से मिलकर बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो? 
इस कथन में भगवान श्रीकृष्ण कहना चाहते हैं कि ये शरीर नश्वर है। न तो मनुष्य का ये शरीर और न ही मनुष्य इस शरीर के लिए है। ये शरीर पांच चीजों से मिलकर बना है और इन्हीं पंचतत्व में मिल जाएगा। लेकिन आत्मा अजय अमर है। 

आत्मा को नहीं पहुंचा सकता कोई नुकसान
शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती, जल इसको गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती।
मनुष्य के शरीर को कोई भी कष्ट पहुंचा सकता है। शरीर आग से जल भी सकता है और इसे कोई गीला भी कर सकता है। लेकिन आत्मा को कोई शस्त्र न तो काट सकता है और न ही अग्नि इसे नुकसान पहुंचा सकती है।

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शक्ति के अनुसार मनुष्य को करना चाहिए कर्तव्य-कर्म 
सुख -दुःख, लाभ-हानि और जीत-हार की चिंता ना करके मनुष्य को अपनी शक्ति के अनुसार कर्तव्य-कर्म करना चाहिए। ऐसे भाव से कर्म करने पर मनुष्य को पाप नहीं लगता।
इस उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण कहने का अर्थ है कि सुख-दुख, फायदा और नुकसान, जीत और हार की चिंता मनुष्य को नहीं करनी चाहिए। मनुष्य को सिर्फ अपना कर्तव्य और कर्म करना चाहिए। ऐसा करने वाले मनुष्य को कभी पाप नहीं लगता। 

केवल कर्म करना ही मनुष्य के वश में है
केवल कर्म करना ही मनुष्य के वश में है, कर्मफल नहीं। इसलिए तुम कर्मफल की आशक्ति में ना फंसो तथा अपने कर्म का त्याग भी ना करो
भगवान श्रीकृष्ण कहना चाहते हैं कि मनुष्य के हाथ में सिर्फ कर्म करना है। उस कर्म का फल क्या होगा ये मनुष्य तय नहीं कर सकता। इसलिए मनुष्य को कर्म करने से पहले कि फल क्या मिलेगा इस बारे में बिल्कुल नहीं सोचना चाहिए। बस जो भी करें वो अच्छा करे। 

ऐसे व्यक्ति के मन से मिट जाते हैं राग, भय और क्रोध 
दुःख से जिसका मन परेशान नहीं होता, सुख की जिसको आकांक्षा नहीं होती तथा जिसके मन में राग, भय और क्रोध नष्ट हो गए हैं, ऐसा मुनि आत्मज्ञानी कहलाता है।
सुख और दुख जिंदगी के दो पहलू हैं। अगर जिंदगी में दुख है तो सुख भी आएगा। अगर कोई व्यक्ति दुख आने से परेशान नहीं है तो उसे कभी भी सुख की आकांक्षा नहीं होती। उसका मन में में राग, भय और क्रोध किसी भी कोई चीज की कोई जगह नहीं होती। ऐसा व्यक्ति आत्मज्ञानी कहलाता है।

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