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जानें कब है भाद्रपद अमावस्या या कुशग्रहणी अमावस्या, साथ ही जानें इसका महत्व

अमावस्या के दिन स्नान, दान और तर्पण का बहुत अधिक महत्व होता है। भाद्र पद में पड़ने वाली अमावस्या बहुत ही फलदायी मानी जाती है। जानें तिथि और महत्व।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published on: September 07, 2018 9:47 IST
भाद्रपद अमावस्या- India TV Hindi
भाद्रपद अमावस्या

धर्म डेस्क: अमावस्या के दिन स्नान, दान और तर्पण का बहुत अधिक महत्व होता है। भाद्र पद में पड़ने वाली अमावस्या बहुत ही फलदायी मानी जाती है। इस दिन पितरो की आत्मा शांति से लेकर कुंजली में कालसर्प दोष का निवारण के लिए उपाय किए जाते है। आपको बता दें कि इस बार भाद्रपद अमावस्या 9 सितंबर, रविवार के दिन है।

भाद्रपद अमावस्या का मुहूर्त

अमावस्या तिथि आरंभ: सुबह 02:42 बजे।
अमावस्या तिथि समाप्त: रात 23:31 बजे तक।

भाद्रपद अमावस्या का महत्व
प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि का अपना विशेष महत्व होता है। भाद्रपद माह की अमावस्या की भी अपनी खासियत हैं। इस माह की अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिये कुश एकत्रित की जा सकती है। मान्यता है कि धार्मिक कार्यों, श्राद्ध कर्म आदि में इस्तेमाल की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित की जाये तो वह वर्षभर तक पुण्य फलदायी होती है। यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इस कुश का प्रयोग 12 सालों तक किया जा सकता है। कुश एकत्रित करने के कारण ही इसे कुशग्रहणी अमावस्या कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। शास्त्रों में दस प्रकार की कुशों का उल्लेख मिलता है –

कुशा:काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

मान्यता है कि घास के इन दस प्रकारों में जो भी घास सुलभ एकत्रित की जा सकती हो इस दिन कर लेनी चाहिये। लेकिन ध्यान रखना चाहिये कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित कना चाहिये और उसकी पत्तियां पूरी की पूरी होनी चाहिये आगे का भाग टूटा हुआ न हो। इस कर्म के लिये सूर्योदय का समय उचित रहता है। उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठना चाहिये और मंत्रोच्चारण करते हुए दाहिने हाथ से एक बार में ही कुश को निकालना चाहिये। इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण किया जाता है-

विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।

कुश एकत्रित करने के लिहाज से ही भादों मास की अमावस्या का महत्व नहीं है बल्कि इस दिन को पिथौरा अमावस्या भी कहा जाता है। पिथौरा अमावस्या को देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। इस बारे में पौराणिक मान्यता भी है कि इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिये उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा सहित सप्तमातृका व 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है।

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