धर्म डेस्क: तिथि तत्व में लिंग पुराण के हवाले से कहा गया है कि बिना भस्म के त्रिपुण्ड और बिना रुद्राक्ष के महादेव शिव की पूजा फलप्रद नहीं होती। निर्णयसिंधु के अनुसार "अग्निसम्भूत त्रिमुखी स्तत्र", यानि तीन मुखी रुद्राक्ष अग्नि से उत्पन्न हुआ है और यह पापों को नष्ट करने वाला है। पंच तत्वों में अग्नि का स्थान विशिष्ट है। तीन मुखी रुद्राक्ष स्वंय में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को धारण करता है, यह जठराग्नि, बड़वाग्नि और दावाग्नि समस्त से मनुष्य की रक्षा करता है। इसे धारण करने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है तथा यह मानसिक परेशानियों को समाप्त करने में सहायक होता है।
त्रिदोषों वात, पित्त और कफ का नाशक, तीनों लिंगों पुरुष, स्त्री और उभय द्वारा पहने जाने वाला, मनुष्य की तीनों ऐष्णाओं की पूर्ति करने वाला, देव, ऋषि और पितृ ऋण से मुक्ति दिलाने वाला, तीनों गुणों... सत, रज और तम का संतुलन बनाए रखने वाला, जिसमें स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश वास करते हों, जिसमें तीन देवी शक्तियों लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा का वास हो। उस तीन मुखी रुद्राक्ष की शक्ति अपरमपार है। साथ ही यह कई बीमारियों में भी सहायक है। बहुत से रोग इस तीन मुखी रुद्राक्ष से ठीक होते हैं। कौन-सी बीमारियों में यह सहायक है।
आंख की तकलीफ, सूजन, ब्लड डिसऑर्डर, ब्लड प्रेशर, मधुमेह, उदर, ज्वर, रक्त वाहिनियों से संबंधी बीमारियां, प्रोस्टेट, टेस्टिकल, एड्रीनल ग्लैण्ड, किडनी और कैंसर इन सभी बीमारियों के कॉमन उपचार में यह रुद्राक्ष शामिल हैं। वहीं जिन लोगों को कमजोरी महसूस होती हो या अधिक आलस्य आता हो, उन लोगों के लिए तो तीन मुखी रुद्राक्ष रामबाण है।
इस तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने का मंत्र:
शिव पुराण के अनुसार ऊँ क्लीं नमः
पद्म पुराण के अनुसार ऊँ ऊँ नमः
स्कंद पुराण के अनुसार ऊँ धुं धुं नमः
महामृत्युञ्जय मंत्र, अघोर मंत्र और ऊं नमः शिवाय
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